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सीख जाते जीना

17 नवम्बर 2021

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शेर- (चाँदनी रातों की बात अजब होती है,)

    (कोई याद आता है ये जब होती है,)


बेचैन सा लगा हमको मिज़ाज़ ज़िंदगी का /-

तन्हाई मे लगा आने ख्याल जब किसी का /-


मुहब्बत से ख़फा होकर चलने लगे रिवाज,

राहे-काबा मिली ना रास्ता मिला काशी का /-


हर कोई भुला चुका है अब कल के हादसे, 

आज फिर शहर मे माहौल तो है खुशी का /- 


दो रोटी पे सब्र रख के सीख जाते जीना,

लालच तो कभी नहीं मरता है आदमी का /-


क्यों नहीं जमाने को चलो हम बदल डालें

रोना रोयेंगे कब तक हम नाकारा बेबसी का /-


अंधेरों से निबाह करके क्यों रह गया अभिन्न

बरसों रहा था कायल कभी ये तो चाँदनी का /-

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