शेर- (चाँदनी रातों की बात अजब होती है,)
(कोई याद आता है ये जब होती है,)
बेचैन सा लगा हमको मिज़ाज़ ज़िंदगी का /-
तन्हाई मे लगा आने ख्याल जब किसी का /-
मुहब्बत से ख़फा होकर चलने लगे रिवाज,
राहे-काबा मिली ना रास्ता मिला काशी का /-
हर कोई भुला चुका है अब कल के हादसे,
आज फिर शहर मे माहौल तो है खुशी का /-
दो रोटी पे सब्र रख के सीख जाते जीना,
लालच तो कभी नहीं मरता है आदमी का /-
क्यों नहीं जमाने को चलो हम बदल डालें
रोना रोयेंगे कब तक हम नाकारा बेबसी का /-
अंधेरों से निबाह करके क्यों रह गया अभिन्न
बरसों रहा था कायल कभी ये तो चाँदनी का /-