shabd-logo

सिलवटें

30 जुलाई 2019

5549 बार देखा गया 5549

सिलवटें ही सिलवटें है

ज़िंदगी की चादर पर

कितना भी झाड़ों,फटको

बिछाकर सीधा करो

कहीं न कहीं से कोई

समस्या आ बैठती

निचोड़ती,सिकोड़ती

ज़िंदगी को झिंझोड़ती है

फिर सलवटों से भरकर

अस्त-व्यस्त ज़िंदगी

फिर ग़म को परे झटकती

आँसुओं में भीगती

फिर आस में सूखती

फीके पड़ते रंगों से

अपना दर्द दिखाती

जिम्मेदारी के बोझ तले

दबती और सिकुड़ती

घिस-घिस के महीन हो

मुश्किलों से लड़कर

अंततः झर से झर जाती

फिर सीधी-सपाट होकर पड़ी

बिना किसी हलचल

बिना कोई झंझट के

सारी परेशानियों से मुक्ति पा जाती

***अनुराधा चौहान***

अनुराधा नरेंद्र चौहान की अन्य किताबें

अनुराधा नरेंद्र चौहान

अनुराधा नरेंद्र चौहान

आप सभी का हार्दिक आभार

2 अगस्त 2019

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत अच्छा प्रयास है | निरंतर लिखती रहिये | हार्दिक शुभ कामनाएं |

31 जुलाई 2019

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

कमाल लिखा आपने

31 जुलाई 2019

anubhav

anubhav

उम्दा कविता, बहुत-बहुत धन्यवाद

31 जुलाई 2019

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए