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सिलवटें

30 जुलाई 2019

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सिलवटें ही सिलवटें है

ज़िंदगी की चादर पर

कितना भी झाड़ों,फटको

बिछाकर सीधा करो

कहीं न कहीं से कोई

समस्या आ बैठती

निचोड़ती,सिकोड़ती

ज़िंदगी को झिंझोड़ती है

फिर सलवटों से भरकर

अस्त-व्यस्त ज़िंदगी

फिर ग़म को परे झटकती

आँसुओं में भीगती

फिर आस में सूखती

फीके पड़ते रंगों से

अपना दर्द दिखाती

जिम्मेदारी के बोझ तले

दबती और सिकुड़ती

घिस-घिस के महीन हो

मुश्किलों से लड़कर

अंततः झर से झर जाती

फिर सीधी-सपाट होकर पड़ी

बिना किसी हलचल

बिना कोई झंझट के

सारी परेशानियों से मुक्ति पा जाती

***अनुराधा चौहान***

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आप सभी का हार्दिक आभार

2 अगस्त 2019

आलोक सिन्हा

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बहुत अच्छा प्रयास है | निरंतर लिखती रहिये | हार्दिक शुभ कामनाएं |

31 जुलाई 2019

प्रियंका शर्मा

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कमाल लिखा आपने

31 जुलाई 2019

anubhav

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उम्दा कविता, बहुत-बहुत धन्यवाद

31 जुलाई 2019

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