सिलवटें ही सिलवटें है ज़िंदगी की चादर परकितना भी झाड़ों,फटकोबिछाकर सीधा करोकहीं न कहीं से कोई समस्या आ बैठतीनिचोड़ती,सिकोड़तीज़िंदगी को झिंझोड़ती हैफिर सलवटों से भरकर अस्त-व्यस्त ज़िंदगीफिर ग़म को परे झटकतीआँसुओं में भीगती फिर आस में सूखतीफीके पड़ते रंगों से अपना दर्द