कविता-सितारों की फसल
नाकाम नहीं हैं बेटियां सितारों की फसल है।
गुनगुनाते होठों पे हम संस्कारों की गजल है।
घर एक हंसी से महक जाए बेटी तो कली हैं।
हर अपने माता पिता की बेटी तो लाडली हैं।
बुरी सोच हमेशा ही अधिकारों की दख़ल है।
नाकाम नहीं हैं बेटियां सितारों की फसल हैं।
इन बेटियों से खुशियों का आसमान रहेगा।
हमें बेटियों की खूबियों का अभिमान रहेगा।
बेटियां हमारी आज किसी से भी पीछे नहीं।
बेटियों के बिना जीवन के बाग बगीचे नहीं।
ये बेटियां चंचल खुशबू बहारों की सजल हैं।
नाकाम नहीं हैं बेटियां सितारों की फसल हैं।
इन कलियों को खिलने दो ना सितम करो।
अमन से जी सकें बेटियां दहेज खत्म करो।
दहेज की गोली ने बेटियों को शूट किया है।
आंसुओं का जहर बेटियों ने घूंट घूंट पिया है।
दहेज अपने वतन में अंहकारों की रफल है।
नाकाम नहीं हैं बेटियां सितारों की फसल हैं।
गंदे विचारों से नर्क ये मुल्क बनाते हो तुम।
मिट न पाए दामन पे कलंक लगाते हो तुम। क्या बीत रही उनपे कोई पूछे उन चेहरों से।
उफनती हुई उनके जख्मों की उन लहरों से।
शीशे की तरह ह्रदय गुलजारों सी अमल हैं।
नाकाम नहीं हैं बेटियां सितारों की फसल हैं।