पात्र
मुख्य पात्र= राजू
दूसरी पात्र = राजू कि पत्नी रीमा
तीसरा पात्र = राजू का दोस्त विश्वास
चौथा पात्र = राजू के दोस्त कि बीवी स्नेहा
कहानी कि शुरुआत राजू के घर से होती है, राजू एक मध्य वर्ग परिवार से ताल्लुक रखता है और एक छोटी मोटी कपड़े दुकान पर काम करते था ,इसकी पत्नी कपड़े सिलाई बुनाई का काम करती थी राजू का एक बचपन का दोस्त था विश्वास जो उसका लंगोटिया यार था बचपन से एक हीं एक साथ में खेल और पढ़ें थे । विश्वास एक लाला (बनिया) परिवार से आता था। और पैसे के मामले में राजू कहीं ज्यादा अमीर था ओर वहां एक सच्चा दोस्त भी था । उसने बहुत बार राजू कि सहायता भी कि उसकी स्कूल फीस जब भी देरी हो जाती तो वह खुद ही जमा कर देता था । कुल मिलाकर दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे पर राजू गरीब जरूर था पर वो स्वाभिमान था ।वो विश्वास के सारे रूपए चुका देता था । विश्वास के मना करने के बाद भी सब रूपये लोटता था ओर कहता था दोस्ती अपनी जगह हन लेकिन पैसे के मामले में दो दोस्तों के बीच कभी दरार नहीं आनी चाहिए । राजू ने दोस्ती में नाजायज कभी भी नहीं उठाया था । बड़े होते ही दोनों अलग हो गए विश्वास पढ़ने के लिए विदेश चल गया वहीं रहने लगा और वही एक भारतीय मुल कि अपनी जाति कि लड़की से शादीकर ली । और बीच बीच में जब भी गांव आए करता था तो राजू से मिलने जरूर आता था । जब भी गांव में आता राजू के साथ बचपन कि जगहों पर अक्सर साथ में समय व्यतीत करते थे। पर विदेश में वापसी जाने के बाद भी बात अक्सर कभी न कभी फोन पर हो जाती थी । अब एक बहुत खुशी का पल आया विश्वास कि बीवी स्नेहा को एक बच्चा हो गया। बच्चे होने से पहले ही विदेश से घर आया थे। तब यहां ख़बर अपने दोस्त राजू को दी उसे घर पर बुलाया राजू बहाने लगाने लगा क्योंकि उसके पास इतने रूपए नहीं थे और नहीं ही कपड़े न ही इतनी बड़ी पार्टी में जाने के लिए खर्च कर सकता था । वो अक्सर विश्वास कि पार्टी जाने से पहले भी कतराता था पर विश्वास के लाख बार ज़िद करने के बाद आखिर में न चाहते हुए भी राजू को हां कहनी पड़ी । अब राजू घर आया और उसकी पत्नी रीमा से बोला सुनो एक बार मेरे पास ओ रीमा बोली सुनो जी क्या हुआ फिर राजू बोला एक समस्या आ गई है। रीमा बोली बताओ क्या हुआ है जी आज मेरे दोस्त विश्वास का फोन आया था उनके घर लड़का हुआ है रीमा उखड़े मन से एक पीड़ा भर मन से थोड़ी चुप रहकर कुछ समय बाद बोली चलो शुक्रा है भगवान का किसी कि तो सुनी यहां तो फुटी किस्मत न तो इतने सालों बाद भी बच्चा का मुंह देखना को मिला न इस गरीबी से पीड छुटा यहां तो दर्द कभी कम नहीं होता भगवान हाथ धोकर पीछे पड़ गए एक छोटा सा सपना देखा था । कोई महल पैसे हवेली तो नहीं मांगे थे । एक बच्चा दे देता तो उसी कि आश में जिंदगी निकल जाती और दुःख थोड़े कम हो जाते । चलो गरीब जैसे तैसे निकल लेते पर बच्चा का दर्द ओर सहन नहीं होता राजू रीमा कि बात सुन कर उसके साथ रोना लगा मन ही मन सोचना लगा अगर मैं रीमा को वहां लेकर गया तो और बहुत ज्यादा दुखी होगी और उसके मन में यही सब बस जाएगा ना इसको पैसा मिला और ना ही कभी औलाद का सुख तो राजू सोच समझ कर रीमा को कहते हैं ठीक है तो मैं विश्वास को फोन कर देता हूं कि हम नहीं आ पाएंगे रीमा मना करती है आप ऐसा मत करो आप चले जाओ राजू रीमा कि बात को काटते हुए कहता है नहीं वहां इतनी बड़ी पार्टी में वैसे जाएंगे तो अजीब लगेंगे और क्या उपहार भला विश्वास को देंगे राजू ने विश्वास की ओर फोन किया।
और उसको बताया कि उसकी भाभी की तबीयत खराब है
दुकान पर उसको छट्टी नहीं मिल रही तो वो नहीं आ सकता वह कुछ ही दिन बाद आ जाएगा विश्वास ने उसके साथ ज्यादा ज़िद नहीं कि वो भी राजू कि मजबूरी समझाता था । कुछ दिनों के बाद राजू छुपते छुपाते कुछ रूपए बचाकर विश्वास से मिल आता है उसका आलीशान घर देखकर और उसके बच्चे के पास जो मात्र दो महीने का था इतने सारे खिलौने झूला देखकर वापसी आते हुए यही सोचता रहा ठीक है हमें कोई संतान नहीं वरन हम उसके क्या दे पाते ये गरीबी और भूखमरी सारी उम्र भर कि जीलत भरी जिंदगी अगर वो विश्वास के लड़के के पास इतने सारे कपड़े खिलौने झूला को देखकर एक मन में घृणा भरती जो कभी खत्म नहीं होती अपनी किस्मत को दोष देते हुए बीच रास्ते से घर तक यही सोचता रहा की एक गरीब और मध्यवर्ग का ये बडे तो छोड़ो ये छोटा सा सपनों का संसार बनाने में ही पूरी जिंदगी निकल जाती है पर यह सपनों का संसार नहीं बन पाते । इसी आस में न जाने लाखों करोड़ों गरीब और मध्य परिवार अपने छोटे से सपनों का संसार को पूरा करने में कड़ी मेहनत के साथ लगातार लगे रहते हैं।