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स्पर्श करते किन्नर।

2 मार्च 2024

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है समाज का इक तबका,


बिखरा है जो कतरा कतरा,


जीवित है जीवंत वजूद,


पर प्रकृति ऐसी कि हुआ मजबूर।।


जी कहती कहता का प्रश्न है,


हो जन्म तो मनाते न जश्न है,


विडम्बना क्रूर ने किया मजाक,


न स्त्री न पुरुष, बस आधी आधी श्वास।।


कितने स्वप्न धूमिल हो मर गए,


ताली की बस थाप कुचल गए,


ईश्वर क्यू हो गया मगरूर,


जबकि दिखता नही कसूर।।


हँसी का पात्र, किन्नर हर छात्र,


भद्दी निगाह से देखे समाज शास्त्र,


भेद के विभेद को समझना होगा,


मन की कोमलता को बरसना होगा।।


यह है जीव,और फिर संजीव,


फिर क्यू है दृष्टि, जो रखती न धीर,


क्या  यह सिर्फ बधाई के लिए है,?,


दुख इनके यहा कौन सिए है।।


जरा आकर तो देखो इनके करीब,


पूछना इनका कैसा नसीब,


अलग थलग हुए समाज से


मांगते जो आत्म विश्वास ये।।


हुई तो है अधिकार की बात,


पर सम्मति सहमति थोड़ी अविश्वास


मजबूरी दयनीय  देह रही है,


हीन सदा ही श्रेय से रही है।।


चाहते सहानुभूती किंचित वे न है,


चाहते स्वीकृति का दर्जा बस सा है,


न चाहते  बनना दया के पात्र


स्वीकार्य हो उनका भी आसन्न


है विडम्बना समाज की ऐसे,


चलते पता आस्तित्व का,बहिष्कृत किए जाते ,क्रूरता अपनो की आप सहे है ,
और बस मे भी कुछ न, कया कहे है।।

बल है सबल पर दृष्टि हेय है,


सामाजिक अस्वीकार्य की वजह से ये है,


समझे इनके भी मन की बात,


तो हो कुछ, खास  सी खास ही बात।।


=/=


मौलिक रचनाकार,


।। संदीप शर्मा।।


यह एक खास  फैन के अनुरोध पर,रचना लिखी है,जो मुझे समाज का आईना बन लिखने को कह रहा.है।।मैं उनके दुख से पूर्णतः अनभिज्ञ हूँ पर कोशिश की है कि एक बात  उनकी भी हो।जो आवश्यक है।समाज का अंग है।।व जिन्हे नकारा नही जा सकता।।

=/=

यह संवेदनशील विषय है।

उतना आसान नही है थाह  पाना।।

जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण। 

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रचनाएँ
स्पर्श
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अनूदित।अनुभूतियां। संदीप शर्मा कृत।।
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स्पर्श

13 फरवरी 2024
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शीर्षक :- स्पर्श ।।मौलिक रचनाकार, संदीप शर्मा।।=/=तुम्हारा स्पर्श मुझे अनूदित कर देता है,सिहरन उठती है दूर तलक, ह्रदय मे,क्या बताऊँ यह स्पर्श कितना आल्हादित सा सब कर देता है।।तुम्हारे ख़्याल की हवा ज

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एक स्पर्श ऐसा भी।

13 फरवरी 2024
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समुद्री रास्ते से जाकर मुकाम आता है,मेरा महबूब है,पानी सा, रूला कर सताता है।।ख्वाहिशों के मेरे साहिल सुखा के रखे है,अश्कों के मोती वहा छुपा के रखे है।।कर दिया है मीठा पानी सब ही खारा सा,मैं संजीदा था,

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तुम्हारा स्पर्श।

13 फरवरी 2024
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तुम्हारे स्पर्श का एहसास ख्वाब ही रहा,कितना खुश नसीब था,वो जो रहकर भी जुदा, तुम्हारे साथ ही रहा।।काश तुम उसी की हो जाती,कम से कम स्पर्श अपनी पसंद का तो पाती।।अब जब तुम हो कही, और यादों मे है और कोई कह

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यह कैसा स्पर्श ?

13 फरवरी 2024
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शीर्षक :- स्पर्श ।।मौलिक रचनाकार, संदीप शर्मा।।=/=तुम्हारा स्पर्श मुझे अनूदित कर देता है,सिहरन उठती है दूर तलक, ह्रदय मे,क्या बताऊँ यह स्पर्श कितना आल्हादित सा सब कर देता है।।तुम्हारे ख़्याल की

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प्यारा साथी।

14 फरवरी 2024
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प्यारा साथी, इक ख़्याल था तुम्हारा, जो आगोश मे मुझे अपनी लिए रहा,हकीकत से न हुआ वास्ता कभी उससे, मैं था कि ख़्वाब मे ही.बस जिए रहा।।इतना महसूस रहा वो मुझको,कि न होने पर भी होना महसूस रहा ,गव

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जिंदा लाश।

14 फरवरी 2024
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वो नफ़रत का समंदर है,मैं ख़ामोश दरिया अनजान ही,ख्वाहिशों की उसकी लहरों का,मैं टूटता जरिया अरमान भी।।वो देख तैरते जहाज को ख्वाहिशें किए है,जहान की,मै कश्ती लिए किनारे पर,वो मस्त

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चालाकियाँ।

18 फरवरी 2024
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चालाकियाँ रूठी है मुझसे,कि मैं गले नही लगाता,जीने की लाजिम शर्त है,वो,और मुझे जीना नही आता।।=/=बेकसूर नही हूँ मैं ,यह भी कह नही पाता,गर अपना लू उन्हे ,कही वह,तो जीना है चला आता।।=/=लुभाती मुझे भ

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आजाद या महज ख़्वाब

23 फरवरी 2024
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शीर्षक:- आज़ाद या महज ख़्वाब।। उसने उसको बंद पिंजरे से निकाल, ऐसा खुला समंदर दिखाया, जिसका कोई आसमां तक न था, था तो खुलापन काफी ,बेहद काफी, पर टुकड़ा जमीं का जरा पास तक न था।। वो खुश तो थी बहुत

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स्पर्श करते किन्नर।

2 मार्च 2024
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है समाज का इक दबका, बिखरा है जो कतरा कतरा, जीवित है जीवंत वजूद, पर प्रकृति ऐसी कि हुआ मजबूर।। जी कहती कहता का प्रश्न है, हो जन्म तो मनाते न जश्न है, विडम्बना क्रूर ने किया मजाक, न स्

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स्पर्श करते किन्नर।

2 मार्च 2024
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है समाज का इक तबका, बिखरा है जो कतरा कतरा, जीवित है जीवंत वजूद, पर प्रकृति ऐसी कि हुआ मजबूर।। जी कहती कहता का प्रश्न है, हो जन्म तो मनाते न जश्न है, विडम्बना क्रूर ने किया मजाक, न स्

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छटपटाहट।

3 मार्च 2024
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उसके दुख का कारण मैं नही उसकी ख़्वाहिशें थी, जो उसने मेरे कद से ज्यादा बना ली थी।।मैं पहुँचने वाला, बमुश्किल से शाक तक,उसने चाहत,दरख्त की अंतिम छोर बता दी थी।।बहुत मुश्किल से मैं चादर मे आता था,

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छटपटाहट। स्पर्श का एहसास।

3 मार्च 2024
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उसके दुख का कारण मैं नही उसकी ख़्वाहिशें थी, जो उसने मेरे कद से ज्यादा बना ली थी।। मैं पहुँचने वाला, बमुश्किल से शाक तक,उसने चाहत,दरख्त की अंतिम छोर बता दी थी।। बहुत मुश्किल से मैं चादर

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