तुम्हारे स्पर्श का एहसास ख्वाब ही रहा,
कितना खुश नसीब था,वो जो रहकर भी जुदा, तुम्हारे साथ ही रहा।।
काश तुम उसी की हो जाती,
कम से कम स्पर्श अपनी पसंद का तो पाती।।
अब जब तुम हो कही, और यादों मे है और कोई कही,
ऐसे मे स्पर्श किसके का क्या रह जाता है,
अनुभूति किसी से अनूदित किसी से ,
स्पर्श का तो खेल ही रह जाता है।।
ऐसा नही कि पहचान नही,इस सब.से मैं अनजान कही,
पर करू क्या, वक्त की दरयाफ्त से भी तो इंकार नही।।
अच्छा यह है कि कमबख्त वक्त, पहले तुम्हारा है ,स्वर्णिम छीना जो समय, मेरा वो जो तुमने सारा है,
आएगी जब मेरी बारी, और जब होऊंगा न मैं तुम्हारी बारी ,
तुम्हे याद भले ही न आए, उस वक्त पर रहेगा वक्त वो तुम पर बहुत भारी।।
यकीन करना मेरा यह वक्त ,तो गुजर जाएगा,
पर जब गुजर जाऊँगा मै ,तब तुम्हारा यही वक्त देखना क्या रंग दिखाएगा।।
जैसे रहा हूँ मै बिना स्पर्श, वैसे तुम्हे मिलेगा तो अपने उन्ही प्रियजनों का स्पर्श,
पर वह वही तुम्हारा हसीन स्पर्श, तुम्हे उन्ही के हर्ष को रूलाएगां।।
वक्त है साहब ,बड़ा ही है कारसाज, साहब,
सारे नजारे,लौटेगें,
पर सहारे जो खुले है बांहें फैलाए,आज वही हाथ तब बंद मुट्ठी मे सिमटे मिलेगें।।
बस करना तो स्पर्श का इंतजार करना ,
मेरा तो पा न सकी,
पर जिसका चाहा उसका जरूर स्वीकार करना।।
=/=
संदीप शर्मा।।
इक अनमोल जीवन की दास्तान।।