“कुंडलिया”इनका यह संसार सुख भीग रहा फल-फूल। क्या खरीद सकता कभी पैसा इनकी धूल॥ पैसा इनकी धूल फूल खिल रिमझिम पानी। हँसता हुआ गरीब हुआ है कितना दानी॥ कह गौतम कविराय प्याज औ लहसुन भिनका। ऐ परवर सम्मान करो मुँह तड़का इनका॥महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
तेरा मिलना बहुत अच्च्छा लगे है, कि तू मुझको मेरे दुख जैसा लगे है...ये चर्चा, किसी के हुस्न की नही है। ना ये बयान है किसी के संग आसनाई के लुत्फ की। सीधे-सहज-सरल लफ्जों में यह तरजुमा है एक सत्य का। सच्चाई यह कि अपनापन और सोहबत की हदे-तकमील क्या है।अपना क्या है? कौन है?... वही जो अपने दुख जैसा है! मतलब
जब हम सुख (happiness) की बात करते है तो उसकी परिभाषा हर इंसान के लिए अलग अलग है। सुखी होना मतलब खुश (happy) होना। अब किसी के लिए उसके अच्छे सपनो का सच हो जाना सुख का अनुभव है, किसी भूखे को अच्छा खाना मिल जाने से खुशी मिलती है उसको सुख का अनुभव होता है, छोटा बच्चा अपनी माँ को देखकर सुख का अनुभव कर
सच्चा सुख एक युवक जो कि एक विश्वविद्यालय का विद्यार्थी था, एक दिन शाम के समय एक प्रोफ़ेसर साहब के साथ टहलने निकला हुआ था। यह प्रोफ़ेसर साहब सभी विद्यार्थियों के चहेते थे और विद्यार्थी भी उनकी दयालुता के कारण उनका बहुत आदर करते थे। टहलते-टहलते वह विद्यार्थी प्रोफ़ेसर साहब के साथ काफ़ी दूर तक निकल गया