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तारा

23 अक्टूबर 2022

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आसमान का तारा हूँ मैं,

चमक है फीकी सी,

और कुछ बेजान,

कही गुमनाम सा,

तारो की भीड़ मे,

खोया हुआ धूल भर सा,

ही तो हूँ,

मुस्कुराता हुआ – हँसता हुआ,

इस खामोश आसमान मे,

टिमटिमाता हूँ कभी,

और कभी गुम हो जाता हूँ,

दूर कही आकाश की गहराइयों मे,

जिसे जानने भर की भी कोई जरुरत नहीं,

क्योकि एक गुमनाम सा तारा ही तो हूँ,

जो ईश्वर को है बहुत प्यारा,

और सभी तारो की ही तरह…

पर मुझे अब फुर्सत ही नहीं,

कुछ भी और कहने की,

और सुनने की,

खामोशी मे टिमटिमाते हुए,

बुझ जाता हूँ.

फिर आकाश की गहराइयों मे.
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रचनाएँ
वो इक कराह... जिससे दिल महक उठा
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रात की चांदनी में चहलकदमी करते हुए ईदगाह के सामने से गुजरा तो एक साया सीढि़यों पर बैठे हुए देखा। देखकर अनदेखा करने की ख्वाहिश तो हुई मगर उनकी चमक खुद-ब-खुद उस ओर खींच गई। मन में कौतूहल उठा चलो देखें तो सही आखिर माज़रा क्या है? थोड़ा ध्यान दिया तो अनजान सा लगने वाला साया कुछ जाना पहचाना लगने लगा, मन में डर का नामोनिशां तक न था। आखि़र खुदा के दर पर जो था, मैं और वो इक साया। धीमी सी कुछ सिसकियां जब मेरे कानों पर पड़ी तो दिल के तार अंदर तक हिल गये। इतनी मार्मिक वेदना थी उस कराह में। धीरे-धीरे जानने की पीड़ा जोर पकड़ने लगी। मन में तरह-तरह के ख्यालों ने घेरा डालना शुरू कर दिया कि आखिर कौन हो सकता है वो। जो अनजान होकर भी न दिखने वाली किसी डोर से खीचा चला जा रहा है और रूह को डर की बजाये कुछ ऐसी खामोशी पकड़ने लगी और दिल खुद-ब-खुद कहने लगाः- . अनजान समझा जिन्हें, वो मेरा अपना ही था। दर्द गहरे थे उनको, जख्म अपना ही था।। . रोते थे वो मेरी खातिर, सोता था मैं भूल उनको। गिरा जब अर्श से नीचे, संभाला उनने ही था।। . भूल कर फिर उनको, दगा करा मैंने। जख्म खुद को देकर, हरा किया मैंने।। . रोये वो मेरी खातिर, दवा दी मुझको। जुल्म सहे खुद पर, रज़ा दी मुझको।। . अनजान समझा जिन्हें, वो मेरा अपना ही था। दर्द गहरे थे उनको, जख्म अपना ही था।।
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वो इक कराह

13 सितम्बर 2022
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रात की चांदनी में चहलकदमी करते हुए ईदगाह के सामने से गुजरा तो एक साया सीढि़यों पर बैठे हुए देखा। देखकर अनदेखा करने की ख्वाहिश तो हुई मगर उनकी चमक खुद-ब-खुद उस ओर खींच गई। मन में कौतूहल उठा चलो देखें त

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वो इक कराह... जिससे दिल महक उठा

13 सितम्बर 2022
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सर्दी की सुबह घने कोहरे में कुछ कदम ही चला था, कुछ जानी पहचानी सी सुगंध उठी। रास्ते में देखने को कुछ भी न था, चारो ओर बस कोहरा ही कोहरा। शहर की खामोशी में कुछ आवाजें जो कभी अज़ान होती और कभी मंदिर से

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तारा

23 अक्टूबर 2022
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आसमान का तारा हूँ मैं,चमक है फीकी सी,और कुछ बेजान,कही गुमनाम सा,तारो की भीड़ मे,खोया हुआ धूल भर सा,ही तो हूँ,मुस्कुराता हुआ – हँसता हुआ,इस खामोश आसमान मे,टिमटिमाता हूँ कभी,और कभी गुम हो जाता हूँ,दूर

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