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ताटंक

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ताटंक छंद "नारी की पीड़ा"सदियों से भारत की नारी, पीड़ा सहती आयी हो।सिखलाया बचपन से जाता, तुम तो सदा परायी हो।बात बात में टोका जाता, दूजे घर में जाना है।जन्म लिया क्या यही लिखा कर? केवल झिड़की खाना है।।1।।घोर उपेक्षा की राहों की, तय करती आयी दूरी।नर-समाज में हुई नहीं थी,

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