shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

तुम्हीं से शुरु

ओंकार नाथ त्रिपाठी

50 अध्याय
1 लोगों ने खरीदा
2 पाठक
26 दिसम्बर 2022 को पूर्ण की गई

अक्सर ऐसा होता है कि जो हम चाहते हैं वह नहीं होता फिर भी हमें स्वीकार करते हुए संतुष्ट होना रहता है, हालांकि यह मन की चाहत नहीं होती है फिर भी अनेक बंदिशों के कारण स्वीकारना होता है।कभी समाज के लिये तो कभी अपनों के लिये।मन में लिये अपनी खुशी के लिये भले ही खुश होने की कोई गुंजाइश न हो लेकिन दुसरों के लिये खुश होना ही पड़ता है।अपने दर्द को मन में छिपाकर दुसरों के दर्द को दूर करने के लिये खुश रहकर खुशी बांटना अक्सर जीवन का मकसद बन जाता है।यह आम जन की बात है।किसी एक की नहीं।मेरे इस काव्य संग्रह का नाम इसी पर केन्द्रित है।हम कभी कभी उदास होने बावजूद भी खुश दिखते हैं। यही है उदास खुशी। यह मेरी आनलाइन पांचवीं कविता संग्रह है।इसके पहले 'योर कोट्स'पर 'शब्द कलश'तथा 'शब्द इन' पर काव्य वाटिका, 'मन की कोठर' से तथा 'मन की गठरी' प्रकाशित हो चुकी है। मेरा यह काव्यसंग्रह 'तुम्हीं से शुरु' इसी पर केन्द्रित है। रचना में कल्पना को फंतासी बनाने की कोशिश की गयी है।ऐसी स्थिति में भाव का किसी से मिलना मात्र संयोग है।इसमें काल्पनिकता कितनी फंतासी लिये हुई है इसका आकलन पाठक ही कर सकते हैं।मेरा एक प्रयास भर है। आशा है यह नया संग्रह आपको रुचिकर लगे। 

tumhin se shuru

0.0(0)

पुस्तक के भाग

1

अरे!...

29 अक्टूबर 2022
2
0
0

अरे!इतना भी दूर,न भागो,मुझसे-कि-जब तुम, ढुंढो खुदको,मुझमें-तब, मिलो ही न।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

2

मिली ही नहीं

30 अक्टूबर 2022
0
0
0

मैं-ढुंढता रहा,तुममें तुमको,लेकिन-मिली ही नहीं,क्योंकि-अगर होती-तब न मिलती।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

3

तुम जो नहीं....

31 अक्टूबर 2022
1
1
0

लोगों का,परदेश से-अपने,घरों को,वापसी,लगी हुई है।बाजार में,खरीददारों की- लम्बी बड़ी,भीड़-सन्नाटे को,चीरती-पटाखों की गूंज।काली- अंधेरी रात में,तारों को भी-मात दे रहीं ,रौनक भरी,फुलझडियां।&nbsp

4

...गांव चलते हैं

1 नवम्बर 2022
0
0
0

चलो-अब गांव चलते हैंक्योंकि-यहां,शहर के-बंद कमरों में,त्योहार!कैसे मनेंगे?-ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र में।

5

मेरी कोशिश होगी...

2 नवम्बर 2022
0
0
0

अब-न तो मैं,तुमसे-शिकायत करुंगा,न ही कोई-उलाहना दूगा।मेरी-कोशिश होगी,तुम- जब, खुद को,मुझमें ढूंढो,तब-अपने को,न पाओ।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

6

वही बातें

3 नवम्बर 2022
0
0
0

मुझे-अब,वही बातें,खाये जा रही हैं,जिन्हें-अक्सर मैं,पी! जाया करता था।-ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

7

तेरी चुप्पी पर...

4 नवम्बर 2022
0
0
0

आज-जिन मुद्दों को,तुम!चुप्पी साधे,अपना-समर्थन दे रहे। कल-बगावत करेंगी,नस्लें!तेरी चुप्पी पर,प्रश्न?- उठने शुरु होंगे,तब-पीढ़ीयां तुम्हें,माफ़!नहीं करेंगी,और-पुछेंगी तुमसे,क्या-कर रहे थे तुम?

8

तुम तो...

5 नवम्बर 2022
0
0
0

तुम तो-झूठ!नहीं बोलती थी,तो, फिर-तेरे वादे!!झूठे, क्यों होने लगे?कहीं-किसी के,संगत का-यह, असर तो नहीं?-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

9

मुश्किल तो है

7 नवम्बर 2022
0
0
0

तुम्हें-भुला पाना,मुश्किल तो है,क्योंकि-मैं, अभी तक,बेवफा नहीं हूं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

10

मालूम नही तुम्हें

8 नवम्बर 2022
0
0
0

पहले-तुम्हें! ढु़ंढ़ते, लोग-मेरे, पास आते थे।लेकिन-अब तो, मेरा पता ही,नहीं मालूम तुम्हें।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

11

किनारा कर ली

9 नवम्बर 2022
0
0
0

हम-चले तो थे,साथ-साथ,मंजिल तक के लिये।लेकिन-यह क्या?उसके किनारे,आते-आते,तुमने ही- किनारा कर ली।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

12

छूने वाली हवा...

10 नवम्बर 2022
0
0
0

तुम-यह समझो,या-न समझो।लेकिन-यह,सच है, कि-तुम्हें-छूने वाली, हवा भी,मुझे-दुश्मन लगती है।-ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

13

मीठा क्या बना...

11 नवम्बर 2022
0
0
0

कड़वा!न बनूं, नहीं तो-लोग!थूक देंगे।इसी-चक्कर में,मीठा !क्या बना,सब-निगल लिये मुझे।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

14

मैं भले ही...

12 नवम्बर 2022
0
0
0

मैं- भले ही,खुद को-समझता रहा,तेरा,खास,लेकिन-तेरी बेरुखी,बताती रही,मेरी, समझ को,सिर्फ-एक बकवास।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

15

अखबार

14 नवम्बर 2022
0
0
0

ध्यान रहे-हमारे रिश्ते!अखबार,न बनने पायें।जो आज,पढ़ने के बाद,कल-कबाड़ बन जाय।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

16

हक़

14 नवम्बर 2022
0
0
0

शक!तुम पर तो,कभी-था ही नहीं।हां!जो हक़ था,वह भी- अब रहा ही नहीं।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र ।

17

कुछ भी नहीं रहा

15 नवम्बर 2022
0
0
0

मैं तो, उसी दिन-हार गया था,जिस दिन-उसके लिये,मैं कुछ भी,नहीं रहा,जिसे मैं-अब तक,अपना!सब कुछ-समझता रहा।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर

18

आदत

16 नवम्बर 2022
0
0
0

जो-तुम्हारी,आदत रही,उसे ही,मैं-हां समझता रहा।मैं, भी,कितना-नादान रहा,आज समझा।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

19

गबरढ़ीठ

17 नवम्बर 2022
0
0
0

मेरा-यह, 'इंतजार' जो है,बड़ा ही-गबर ढ़ीठ है,वह जानता है,तुम, नहीं आओगी,फिर भी-आस लगाते बैठा है,तेरे-इंतज़ार में।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

20

ख्वाहिश

18 नवम्बर 2022
0
0
0

मेरी-ख्वाहिश!बस-इतनी भर है,जो प्रेम,मैंने-उपहार में,तुम्हें दिया है,काश!उसका सम्मान,तुम भी-उसी तरह करती,जैसा-तुम पायी हो।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र

21

किसी दिन...

21 नवम्बर 2022
0
0
0

चलो-पौध लगाया जाये।क्या जाने-किसी दिन,कोई-इसके नीचे बैठे,और-वह बुद्ध,या- न्यूटन बन जाये।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

22

तेरे ही खयाल

21 नवम्बर 2022
0
0
0

आज-मैंने फिर,लिख डाले,अपनी कलम से,अपने मन के,पन्नों पर- अपनी सोच लिये,तेरे ही खयाल।-ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उ

23

उम्र की ढ़लान पर

22 नवम्बर 2022
0
0
0

हमारे-रिश्तों के,जन्मने की,खुशी का-पारामार था,हमें!जो, धीरे-धीरे-घुटनों के बल, चलते हुए-न जानें कब?जवान हो गये,पता ही नहीं चला।लेकिन-यह क्या?उम्र की ढ़लान पर-पहुंचे रिश्ते!अब- खांसने लगे हैं

24

सलीका

23 नवम्बर 2022
0
0
0

चल कर,देखो-किसी,गरीब की-बस्ती में।वहां- फटे दुपट्टे को भी,कैसे? ओढ़ा जाये,इसका-सलीका सीखो।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

25

पहली बार

25 नवम्बर 2022
0
0
0

कल,जब मैंने,देखा-सोशल मीडिया पर, तेरी फोटो-पहली बार।मुझे-न तो, गुस्सा आया,और- न, ही मैंने-कोई सुझाव,देना चाहा तुमको।क्योंकि-मैं, जान चुका हूं,कि मेरा-कोई भी असर,नहीं पड़ने वाला है,अब तुम पर।

26

बहू हो रही हो

26 नवम्बर 2022
0
0
0

तेरा नसीब,और-तेरे! बर्दास्त करने की, क्षमता-तय करेगी,तुम्हारे- घर के मिलने,तथा-उसके बसने की,दशा व दिशा,क्योंकि -तुम, बेटी से,बहू हो रही हो।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

27

....जाने के बाद

27 नवम्बर 2022
0
0
0

अंदर से-बिखर जाना ही,मेरी, मजबूती का-राज़ है।होंठों पर मुस्कान,छिपाती हैं,मेरे, अंदर की-उदासियों को।ये कहकहे-उन तन्हाइयों का,पदचाप है-जो समा गयी हैं,रोम रोम में-तेरे जाने के बाद।-©ओंकार नाथ त्रिपाठी ब

28

एक श्रद्धांजलि

27 नवम्बर 2022
0
0
0

हाथ-पकड़कर,चलना सिखायी,और-जब, चलने लगा,तब-तुम्हीं छोड़कर,चल दी?जरा भी- नहीं सोची,कहीं-ठेस लगने से,मैं गिर पड़ूं,कौन उठायेगा मुझे?मैंने-याद! भले हीं नहीं रखा,लेकिन-राखी भेजना नहीं भूली,रक्षाब

29

इश्क

29 नवम्बर 2022
0
0
0

चलो,इश्क को,उतारा जाये,जिस्म से,रुह तलक।फिर इसे-महकाया जाये,तब-रुह से रुह तलक।आओ,मोहब्बत को,हकीकत में-इबादत कर दें।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

30

जाने के बाद से

30 नवम्बर 2022
0
0
0

तेरे- जाने के बाद से,जो शोर- उठ रहा है, अन्दर से,वह,अकेलेपन से,कहीं ज्यादा,पीड़ादायक है।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

31

अंदाजा है तुम्हें

2 दिसम्बर 2022
0
0
0

तेरी-बेबाकियां,बिना-लाग लपेट के बोलना,यह, सब-साबित करता है,कि, तुम-अब बदल रही हो।तेरा-यह बदलाव,मुझे-कहां तक तोड़ देगा,इसका-अंदाजा है तुम्हें?खैर छोड़ो,अगर-यह सोचती तबबदलती ही क्यों?मैं तो-जहां रहा,जैस

32

गुलाब की तरह

3 दिसम्बर 2022
0
0
0

घाव-धीरे, धीरे-भर ही जाते हैं,हमेसा की तरह।तुम-मशगुल,हो जाओगी,नये-अपनों के बीच,मुझसे,दूर होकर,जैसे-कल तक,मेरे साथ रही।तेरे-जीवन के,किसी कोने में,मैं रहूंगा,या नहीं-मुझे क्या पता?लेकिन-मेरे!जीवन की,तहो

33

मेरा मोह...मेरा प्रेम

4 दिसम्बर 2022
0
0
0

तेरी-हरकतों पर,मेरा गुस्साना,तेरे प्रति-मोह है मेरी,और-गुस्से को पी जाना,मेरा प्रेम हैतुम्हारे लिये।यह भी-जानती हो तुम,तेरा साथ ही,मलहम है मेरे लिये।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

34

खामोशी

5 दिसम्बर 2022
0
0
0

दर्द-जब हद से,गुजर जाता है,तब- खामोशी ही,हासिल होती है।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

35

हसरतें

6 दिसम्बर 2022
0
0
0

कहां-जी सका है,कोई?अपने मुताबिक।दिल-चाहता कुछ है,और-होता कुछ और।मन की,हसरतें,पूरी कहां हुईं?वक्त की-इल्तज़ा के आगे।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

36

नाराज़गी

7 दिसम्बर 2022
0
0
0

तुम-मुझसे,नाराज होना,मत छोड़ना।क्योंकि-यह नाराज़गी,मुझे-तुम्हें मनाने का,ह़क देती है,इसके बगैर-मैं नहीं-रह सकूंगा।जानती हो?सफ़र में-बेवक्त का,बिछड़ाव!ताउम्र-सुकून नहीं देता।© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतप

37

जीने का ऩशा

8 दिसम्बर 2022
0
0
0

जीवन के,किसी भी मोड़ पर,अगर-धड़कनों में,जीने का नशा हो,तब- जिंदगी जीने में,एक!दीवानगी का,म़जा होता है।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

38

....न तुम रुकी

9 दिसम्बर 2022
0
0
0

मेरा-नाराज होना,फिर-मान जाना।तेरा-नाराज होना,और-मेरा तुम्हें मानना।यह-करते करते,एक दिन-हम जुदा हो गये।न मैंने- तुमको रोका,न ही-तुम रुकी।तेरे-जाने के बाद,किसी से- जुड़ा नहीं। जानती हो?ते

39

आदत

10 दिसम्बर 2022
0
0
0

मुझे-तेरे साथ की,आदत!हो गयी है,इसीलिए,तेरा-साथ! छूटने की,आहट से ही,डर जाता हूं।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र

40

अकेला

11 दिसम्बर 2022
0
0
0

मेरी-पीड़ा के लिये,शायद!दोषी मैं ही हूं।मैंने तो-सब पर किया,निक्षावर-सबकुछ अपना,अपना-समझकर उसको।लेकिन-उसने जरा नहीं,मुझको-अपना समझा।जिसपर-नेह लुटाया सारा,छोड़ा,उसने-मुझे, अकेला।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अ

41

गुब्बारा

12 दिसम्बर 2022
0
0
0

चलो- उस बच्चे से,गुब्बारा खरीदें,जो-गुब्बारों से, खेलने की उम्र में,गुब्बारा-बेंच रहा है।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

42

यह हूनर सीखा कहां से

13 दिसम्बर 2022
0
0
0

तेरा-मुझको, यकीन दिलाना कि-तुम! मेरी, अपनी हो।फिर-विश्वास दिलाने के बाद,तरह-तरह के,बहानों से,अपनी-व्यस्तता दिखाकर,मुझसे-दूरी बनाने लगना,बात!करने तक की फुर्सत,न निकाल-नज़र अंदाज़ करना,यह

43

ठीक उसी....सा

14 दिसम्बर 2022
0
0
0

जिस तरह,वर्ष के-सभी महीने,चले जाते हैंदिसम्बर को,छोड़कर-जनवरी के पास,नयापन की,चाह लिये,ठीक उसी-दिसम्बर सा,हो गया है, अब-मेरा भी हाल।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

44

ऐसा तलाश कर

15 दिसम्बर 2022
0
0
0

ऐसा-तलाश कर,देखो-कोई मिलता है?जो, तेरी-बेरुखी के बाद भी,तुम्हीं से-प्यार भी करे।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

45

रट!

16 दिसम्बर 2022
0
0
0

जिसे-तुम,बार बार,अपना घर-अपना घर का,रट!लगा रहती हो,एक दिन-तुम्हारा यह भ्रम,जब टूटेगा,कि-वह तो-तुम्हारा घर ,है ही‌ नहीं,तब तुम्हें-असहनीय! पीड़ा होगी।ठीक वैसे ही-जैसे!मुझे होती है,जिसे मैं-अ

46

तेरे जाने के बाद

17 दिसम्बर 2022
0
0
0

तेरे-जाने के बाद,सब कुछ,बिखरा पड़ा है, यहां-वहां- कमरे में।एक ख्वाब!जो देखे थे,हम-साथ-साथ,न जानें-कहां खो गया है।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

47

तुम भागती रही

18 दिसम्बर 2022
0
0
0

मुझे-अपनी ओर,खिंचती हुई,तुम-भागती रही,किसी,और की ओर।मैं-भागता रहा,तुम्हारी ओर,सरपट!अनेक-ठोकरों पर,मुंह के बलगिरना,फिर-उठकर,तेरे ही पीछे-दौड़ना,जारी रहा।इसी में-जो मेरा रहा,वह-टुटने लगा,तुम्हें-अपना सम

48

लेकिन,आयी नहीं

19 दिसम्बर 2022
0
0
0

मैंने तो-दिल-और, दीये,दोनों जलाये-आंखों के,दरवाजे पर।तुम गयी-आने को कहकर,लेकिन-आयी नहीं,लौटकर।-© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

49

कैसा रिश्ता है

20 दिसम्बर 2022
0
0
0

तुमसे-तेरी बेवफ़ाई पर,न तो-नफ़रत कर पा रहा,और न‌ ही-मुहब्बत।समझ नहीं पा रहा,कैसा रिश्ता है,हम- दोनों के बीच।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

50

हे स्त्री!

21 दिसम्बर 2022
0
0
0

तेरा-इतराना,फिर-शर्माना!बात-बात पर,हंसना-हंसते-हंसते,गुस्साना!रुठना-हरपल मुझसे,और-बहलाना।समर्पित करना,हम पर-सम्पूर्ण अपना,प्रेम!यही तो तेरे-सौन्दर्य की,पंखुड़ियां हैं,हे स्त्री!जिसकी-सुगन्ध!महक रही है

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए