अक्सर ऐसा होता है कि जो हम चाहते हैं वह नहीं होता फिर भी हमें स्वीकार करते हुए संतुष्ट होना रहता है, हालांकि यह मन की चाहत नहीं होती है फिर भी अनेक बंदिशों के कारण स्वीकारना होता है।कभी समाज के लिये तो कभी अपनों के लिये।मन में लिये अपनी खुशी के लिये भले ही खुश होने की कोई गुंजाइश न हो लेकिन दुसरों के लिये खुश होना ही पड़ता है।अपने दर्द को मन में छिपाकर दुसरों के दर्द को दूर करने के लिये खुश रहकर खुशी बांटना अक्सर जीवन का मकसद बन जाता है।यह आम जन की बात है।किसी एक की नहीं।मेरे इस काव्य संग्रह का नाम इसी पर केन्द्रित है।हम कभी कभी उदास होने बावजूद भी खुश दिखते हैं। यही है उदास खुशी। यह मेरी आनलाइन पांचवीं कविता संग्रह है।इसके पहले 'योर कोट्स'पर 'शब्द कलश'तथा 'शब्द इन' पर काव्य वाटिका, 'मन की कोठर' से तथा 'मन की गठरी' प्रकाशित हो चुकी है। मेरा यह काव्यसंग्रह 'तुम्हीं से शुरु' इसी पर केन्द्रित है। रचना में कल्पना को फंतासी बनाने की कोशिश की गयी है।ऐसी स्थिति में भाव का किसी से मिलना मात्र संयोग है।इसमें काल्पनिकता कितनी फंतासी लिये हुई है इसका आकलन पाठक ही कर सकते हैं।मेरा एक प्रयास भर है। आशा है यह नया संग्रह आपको रुचिकर लगे।