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उम्र का नशा

9 दिसम्बर 2021

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एक युवा जो समाज का प्रतिनिधित्व करता था, आज समाज का विरोधी बन बैठा है ना केवल समाज का बरन अपने परिवार का भी एक मां विकल्प उसकी कोख में पल रहा बेटा हो या बेटी जब समाज के सामने आए तो वह उसकी को कोख को पवित्र कर देगा तमाम परेशानियों और दिक्कतों के बावजूद संतान को की चुनौती को स्वीकार करती है, और जानती है इस चुनौती में मेरी जान भी जा सकती है। लेकिन उसे वह चुनौती मानो वह अभूतपूर्व सफल है जिसे उसने पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत ही झोंक दी हो जन्म से लेकर सुबोध होने तक वह मां उसके व्यवहार से अबोध रहती है उसे वास्तव में उसकी जिसे उसने अपनी कोख में पाला है कायाकल्प के विषय में कोई जानकारी नहीं है वह यही समझती रहती है कि मेरा नौनिहाल मेरा और मेरे पति का मेरे कुल का नाम रोशन करेगा लेकिन जैसे ही वह अपने छात्र जीवन के उस चरण में प्रवेश करता है जिसे हम वयस्क कहते हैं अब वह वयस्क, वयस्क नहीं है   बल्कि वह एक ऐसा बूत बन चुका है जिसने समाज की सारी मर्यादाओं का उल्लंघन कर दिया उसे परवाह नहीं है अपने मां के दूध की किसी पीकर वह ना केवल पैरों पर खड़ा होना सीखा बल्कि उन माता-पिता से अपनी पहचान भी लिए हुए हैं  भूल जाता है कि कहीं मैं उनकी पहचान को धूमिल तो नहीं कर रहा यह नशा किसी शराबका चरस का गांजे का नहीं बल्कि एक ऐसी लत का है जो शरीर को बेकार नहीं बल्कि सोच को बेकार करती है और जब सोच बेकार हो जाती है तो ना ही कोई डॉक्टर ना ही कोई हकीम ना ही कोई देवालय ना ही कोई शिवालय काम आता है यह नशा है समाज में छोटी सोच रखने का वह सोच जो बहन बेटियों को अपने घरों से निकलने से रोकती है वह सोच जो बहन बेटियों को अपने मन की परिधानों को पहनने से रोकती है समाज की आता ताई अपनी सोच बदलने की वजह उनके कपड़े पहनने के तरीके उनके चलने के तरीके उनकी बात करने के तरीके उनके स्कूल उनके कॉलेजों पर रोक लगाने की बात करते हैं समाज में यह नशा उन नेताओं से काफी बुरा है जो दुकान पर खरीदा या बेचा जाता है इसकी तो दुकान भी हम ही हैं खरीदने वाले भी हम ही हैं बिकने वाली भी हम ही हैं जब इस नशे पर पैसे बेकार नहीं होते तो इस नशे की विषय में आज का युवा क्यों नहीं सोचता कि कल हमें भी उस दरवाजे तक पहुंचना है जिस दरवाजे में बहन बेटी मां नाम की स्त्रियां हमारा इंतजार कर रही हैं क्यों हम सोच अपनी नहीं बदलते कल जब हम अपने घर आंगन में बेटी के रूप में कुदरत का दिया हुआ उपहार पाएंगे तो क्या उसके सामने शर्मिंदा नहीं होंगी जो हमने अपनी युवा पीढ़ी में किया वह बिल्कुल गलत नशा था मान सम्मान सबका होता है आज हमारे घर आंगन में बेटी होने पर हमें उसकी मान सम्मान की चिंता है क्या चिंता उस वक्त क्यों नहीं हुई जब हम दूसरे की बहन बेटियों को बुरी निगाह से देख रहे थे अब हमें विरोध नजर क्यों आने लगा हमने इस ग्रुप को समय क्यों नहीं सोचा जिस समय समाज में हम इसी प्रकार की गंदगी को फैला रहे थे हर युवा को है बात पूछनी चाहिए समझ नहीं चाहिए कि समय हमारे सामने खड़ा रहता है लेकिन हम समय को समझ नहीं पाते हैं और जब समझ पाते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है आओ छोटी मानसिकता के नशे से खुद को भी और दूसरों को भी बचाएं बेटियां बेटियां होती हैं उन्हें उनका हक दिलाएं 

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