दुनिया सच में एक ऐसी पाठ शाला है जहां
शिष्य और शिक्षक की संख्या लगभग बराबर
है इसमें प्रधानाचार्य से लेकर क्लर्क और
चपरासी तक की व्यवस्था चाक चौबंध हैं।
शैक्षणिक विषयों की कोई गिनती ही नहीं है।
विषय विशारद, विषय वैज्ञानिक और प्रशिक्षुओं की अच्छी खासी तादाद हैं।
परीक्षाएं हर दिन पूरी पारदर्शिता से संपन्न हो
रही है, पूर्व में तैयारी का कोई मौका ही नही
यहां तक आज किसकी किस विषय की परीक्षा है वो भी नही मालूम। न चुटका करने
का मौका है न गुंजाइश ही है।नकल करने की
भी व्यवस्था नही है।
परिणाम तथाकाल ही उपलब्ध हो जाते हैं।
दुनिया की पाठशाला सुचारू रुप से अनवरत
सफलता पूर्वक कार्य रत है।
घूंस, डोनेशन यहां नही चलती बस प्रतिदिन
पहले परीक्षा दो और बदले में सबक लो, याद
रखना न रखना तुम्हारी मर्जी।
हर आनेवाला कल एक ऐसा ब्लैकबोर्ड हैं
पता नही कल उसपे क्या लिखा जायेगा।
लेकिन अद्भुत है ये बेशक आंखो के सामने
से गुजर जाएगा पर उस पर लिखा एक भी
हर्फ कभी मिट नही सकता।
कर्म की कलम और भावनाओं की सियासी है
हर दिन लिखना जरुरी है। गैर हाजिरी का
मतलब वो जिंदगी एक सिरे से खारिज है
हमेशा के लिए।
इसलिए दुनिया की पाठशाला में कोई नियम
बद्ध तरीके से साप्ताहिक छुट्टी वाला ईतवार
नही आता। बल्कि केवल एक बार ही एक
अंतवार आता है। जिसमे पूर्ण कालिक
अवकाश का प्रावधान है।
दुनिया की पाठशाला की आगे की लेख श्रृंखला मे अस्थिरता उत्पन्न करने वालै व्यवहार और उसके विषयों पर चर्चा करेंगे।
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लेखिका - ममता यादव (प्रान्जलि काव्य)
स्वरचित व मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
भोपाल मध्यप्रदेश
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