मित्रो हर व्यक्ति के पास एक मन होता है।
लगभग हर व्यक्ति की अपनी एक अलग
विचार शैली और सोंच का एक दायरा होता
है। हर एक के विचार शैली में एक बात
लगभग समान होती है कि किसी भी विषय
मै किसी के भी बारे में अपने अनुसार ही
सोचता है।दुनिया की पाठशाला का हर विषय इसी से प्रभावित है।
ऐसा कभी नही होता कि हम सामने वाले
की जगह खुद को रखकर फिर विश्लेषण
कर अपनी राय निर्धारित करें। बल्कि होता
उल्टा है हम खुद की जगह सामने वाले को
खडा कर उसके इर्द-गिर्द अपने ताने बुनते
है। और एक दोषपूर्ण निर्णय निकाल लेते हैं।
जो की एक तटस्थ विचार शैली का नतीजा
होता है। और उस पर हमें पूरा विश्वास भी
होता है।
ऐसे निर्णय से कई अनावश्यक जटिल विवादों
का जन्म होता है और भ्रम की स्थिति निर्मित
हो जाती है।
दुनिया की पाठशाला के वातावरण को दूषित करने मे इस व्यवहार की महती भूमिका होती
है।
दुनिया की पाठशाला मे अस्थिरता पैदा करने
वाले किसी अन्य घटक की अगले भाग में फिर चर्चा होगी।
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ये परिणाम एक ऐसी सोंच पर आधारित है
जिसमें दूर दूर तक पारदर्शिता है ही नही तब
परिणाम उचित कैसे मिल सकते हैं।
किसी को भी समझने के लिए मन में मनोयोग की उस अवस्था की उपस्थिति
आवश्यक है जिसमें "जो है वो नही है और
जो नही है वह है" मन को इस अवस्था तक
आसानी से नही पहुंचाया जा सकता केवल
सतत अभ्यास से ही संभव है