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जैसी प्रीति कुटुंब की,
तैसी गुरु सो होय ।
कहे कबीर ता दास का ,
पग ना पकड़े कोय,,!!
अर्थात ,*" जिस प्रकार मनुष्य अपने कुटुम्ब से प्रेम करता है ,यदि वही भाव अपने गुरु के प्रति भी रखे ,तो फिर उस दास का तो सहज ही कल्याण हो जाता है ,!!
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