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मनुष्य का जीवन जन्म से सार्थक नहीं होता है,जन्मके पश्चात् ही मनुष्य अपने जीवन को सार्थक करनेकी ओर कदम बढ़ाता है।जीवन को सार्थक करने के इस चक्र में मनुष्य कईकठिनाइयों का सामना करता है, गिरता है संभलता