विक्रम सिंह अपने पैतृक क़िले के अध्ययन कक्ष में विचारमग्न बैठा चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। उसने अभी-अभी अपने भतीजे विजय से बात की थी, जो दुनिया के दूसरे छोर पर कैलिफ़ोर्निया में सेन होज़े में रहता था।
चेहरे पर नौजवानी का ओज लिए, लंबा और सुगठित काया वाला विक्रम 65 साल की अपनी उम्र में स्वस्थ था और अपनी उम्र से 20 साल छोटा लगता था। केवल उसके शैतान बाल सफ़ेद भर थे जो उसकी उम्र को छिपा नहीं पाते थे। वह तभी से हर हफ़्ते विजय को फ़ोन करने की व्यग्र प्रतीक्षा किया करता था जब से उसने उसको उसके माँ-बाप की एक कार दुर्घटना में हुई दुर्भाग्यपूर्ण मौत के बाद, पंद्रह साल की उम्र में पढ़ने के लिए अमेरिका भेजा था।
आज भी, विक्रम सोचा करता था कि कार की वह दुर्घटना क्या वाक़ई एक संयोग था । वह आमने-सामने की टक्कर थी लेकिन उनको ट्रक के ड्राइवर का कभी पता नहीं चलसका। विजय इसलिए बच गया था क्योंकि वह उस वक़्त कार में नहीं था।
विक्रम ने अपना सिर झटका। शायद वह ख़ामख़्वाह शक्की हो रहा था। लेकिन तब, वही तो था जो उसके सिर पर मँडराते ख़तरे को जानता था। कौन जानता था कि वही ख़तरा पंद्रह साल पहले भी मौजूद था। यही वह ख़ौफ़ था जिसने उसको नई दिल्ली के उसके आरामदेह अपार्टमेंट से हटाकर इस क़िले में एक एकांतवासी की तरह रहने को मज़बूर कर दिया था।
उसकी नज़रें अनायास ही उसकी डेस्क की बग़ल के सॉफ़्ट बोर्ड पर जा पड़ीं जहाँ उसने समाचारों की कतरनों को लटका रखा था। पिछले दो सालों में आठ आदमी संदिग्ध हालत में मारे गए थे, ये दुनिया की अलग-अलग जगहों पर रह रहे वैज्ञानिक, डॉक्टर, वास्तुविद और इंजीनियर थे। ये सब भी उसी की तरह ज्ञानी और अपने-अपने क्षेत्रों के नामी-गिरामी लोग थे।
विक्रम एक परमाणु वैज्ञानिक रहा था और उसने पोखरण में 1974 में किए गए हिंदुस्तान के पहले परमाणु विस्फोट में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दस साल पहले जब वह जौनगढ़ आया था, तब उसने विकसित टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए इस क्रिले को मज़बूत बनाने में अपनी जायदाद का एक छोटा सा हिस्सा खर्च किया था और इन सालों के दौरान उसमें तरह-तरह की मरम्मत कराई थी ताकि वह उसी तरह अभेद्य बन सकता जैसा वह 500 साल पहले था जब उसके पूर्वज इस क़िले से अपनी हुकूमत चलाया करते थे।
उसने अपना लैपटॉप अपनी तरफ खींचा। फुर्ती से अपना पासवर्ड टाइप कर उसने अपना मेल बॉक्स खोला और उसके ईमेलों के बीच एक ख़ास ईमेल को खोजने लगा। उसे वह मिल गया और उसने कोई सौवीं बार उसको पढ़ा। वह छह महीने पहले आया था, हत्या की आख़िरी वारदात के तुरंत बाद उसके थरथरा देने वाले मज़मून को पढ़ते हुए उसका खून ठंडा पड़ गया।