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Vikas Kumar Giri की डायरी

Vikas Kumar Giri

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vikas kumar giri ki diary

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पुस्तक के भाग

1

चुनावी मेंढक Poem on Delhi election

3 फरवरी 2020
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फिर से निकलेंगे चुनावी मेंढक इस चुनाव में,वो घोषणाओं के पुल बांधेंगे, लोगो को लालच देकर बहलायेंगे और फुसलायेंगे, सभी जाति-धर्मों के लोगों से अलग -अलग मिलकर उनका दुखड़ा गाएंगे,नीले सियार के वेश में आकर खुद को शेर बताएँगे, चुनाव जीतने के लिए ये दंगा भी करवाएंगे,फिर से होंगे नए-नए वादे, जुमले जुमलों का

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हां मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूं Poem on india

3 फरवरी 2020
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भूखे, गरीब, बेरोज़गारअनाथों और लाचार कीदास्तान लिखने आया हूं,हां मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूं। एक ही कपड़े में सारे मौसम गुज़ारने वाले,सूखा, बाढ़ और ओले से फसल बर्बाद होने पर रोने और मरने वालेकर्ज़ में डूबे हुए उस अन्नदाता किसान की ज़ुबान लिखने आया हूं,हां मैं आज़

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क्या होती है माँ

18 मई 2020
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तुझे कुछ होने पर जिसकाकलेजा छलनी हो जातावो होती है माँखुद जमीन पर सोकरतुझे अपनी बिस्तर पर सुला देवो होती है माँखुद कितनी भी तकलीफ में होबस तुम्हे देखकर मुस्करा देवो होती है माँखुद कितनी भी भूखी होलेकिन तुम्हे अपने हिस्से काभी खाना खिला देवो होती है माँखुद कभी स्कूल ना गई होलेकिन तुम्हे पढ़ाने के लिएअ

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क्योंकि साहब मैं अनाथ हूं Hindi Poem On Orphan

31 दिसम्बर 2021
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<p>ले कटोरा हाथ में चल दिया हूं फूटपाथ पे<br> अपनी रोजी रोटी की तलाश में<br> मैं भी पढना लिखना चाहता

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