ग़ज़ल
इस जमीं के लोगों की बग़ावत कम नहीं होती।महज एक-दो ही अक्षर से जहालत कम नहीं होती।अजी! एक दोस्त को एक दोस्त से गहरी शिकायत है।शिकायत रह ही जाती है शिकायत कम नहीं होती।तुझे मुझसे अदावत है मुझे तुझसे अदावत गरअदावत ही अदावत से मुहब्बत कम नहीं होती।Is zami ke logon ki bagaavat kam nahi hoti.Mahaz ek-do hi