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'विसंगतियों का दौर'

4 अक्टूबर 2021

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            "विसंगतियों का दौर"

   
   "व्यवस्था अनेक विसंगतियों से जूझ रही....
   झूठ और कुतर्को भरी राजनीति हो रही;
   तुगलक की तरह नीतियाँ तय हो रही;
   आंकड़ों का ढिंढोरा पीटा जा रहा;
   चौतरफा विकास बस फाइलों में हो रहा;
   रटन्तु तोता की तरह गुणगान हो रहा!"


   "बयानों के अनुसार पक्ष-विपक्ष तय हो रहा;
   अपराध 'दिन दूना-रात चौगुना' बढ़ रहा;
   जाति-धर्म से आरोपी दोषी-निर्दोष हो रहा;
   हैसियत देख न्याय की संकल्पना तय हो रही;
   असहाय के लिए न्याय दूर की कौड़ी लग रही!"


   "लोकतंत्र अब कुलीनतंत्र बन रहा;
    मौका देख दल-बदल हो रहा;
    सत्ता के लिए सिद्धांत टूट रहा;
    भाई-भतीजावाद चंहुओर दिख रहा;
    हर बात में वोट-बैंक बनाया जा रहा;
    सर्वजन हिताय की जगह स्वार्थ सिद्ध हो रहा;
    मैं ही राजा बना रहूं, मानसिकता घिर रहा;
    ईनामदार परेशान और बेईमान मौज मना रहा!"

   
   "उच्च वर्ग उच्चतम स्तर प्राप्त कर रहा;
    मध्यमवर्ग चक्की के पाटों बीच पिस रहा;
    निम्न वर्ग राजनीति का शिकार हो रहा!"


   "फर्जी खबरों का मायाजाल फैल रहा;
    अफवाहों पर विश्वास किया जा रहा;
    असहमत होने पर गलत बताया जा रहा;
    विरोध की आड़ में अराजकता बढ़ रहा;
    कट्टरता का विष-बेल बोया जा रहा;
    भौकाल के लिए पागलपन बढ़ रहा;
    अधिकारों का दुरूपयोग हो रहा;
    कर्तव्यों से मुंह मोड़ा जा रहा;
    सच्चाई को सूली चढ़ाया जा रहा;
    नैतिकता बस बातों में ही दिख रही;
    अंतरात्मा की आवाज दबायी जा रही;
    पतन की पराकाष्ठा बढ़ रही!"


   "आधुनिकता में अनैतिकता प्रदर्शित हो रहा;
    चलचित्रों में अश्लीलता खुलेआम दिख रहा;
    हिंसा, गाली-गलौज का प्रचलन बढ़ रहा;
    सदाचार को पिछड़ापन बताया जा रहा;
    आजादी में मनमानी का समर्थन हो रहा;
    अनुशासन को अवरोध नाम दिया जा रहा!"


   "समाज एक अजीब संक्रमण दौर से गुजर रहा;
   यह किसी को भला तो किसी को बुरा लग रहा!!"
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रचनाएँ
'मेरी प्रिय कविताएँ'
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बबुआ की सरकारी नौकरी लगी! यह खबर तेजी से चंहुओर फैली! फिर मान-सम्मान का दौर शुरू हुआ! इस बात से बबुआ का सीना 56 इंची हो गया। नौकरी मिलते ही, बबुआ बड़का विद्वान हो गए! अखबारों/कोचिंगो में बाइट्स दे-देकर निहाल हो गए! परिचित-अपरिचित उपहार लाने लगे! दुश्मन भी अब मेलजोल बढ़ाने लगे! फिर बबुआ के बिआह की बात शुरू हुई! इस बात से दहेज की मंडी में आवक बढ़ गयी! मंडी में बबुआ का भाव दिन-रात चढ़ने लगा! देखनहरू लोगों से बबुआ का दुआर पटने लगा! भाव सुन-सुनकर बबुआ के बापू का मन अकुलाने लगा! पल-भर में मालामाल होने का ख्वाब नजर आने लगा! फिर बबुआ के बापू ने घरवालों से राय-सलाह लिया! सबसे ऊंचा भाव देखकर बबुआ का बिआह तय किया! शुभ मुहूरत देखकर बबुआ का बिआह हो गया! गाँव-जवार में दहेज की चर्चा सरेआम हो गया! दहेज की रकम सुन सब अचरज में पड़ गए! कुछ बड़ाई तो कुछ बुराई करने में लग गए! कोई बबुआ के बापू तो कोई दहेज को दानव बताने लगा! सच जानते हुए भी, सच्चाई से मुँह चुराने लगा! दहेज लेना-देना दोनों अपराध है! यह सब जानते हैं, लेकिन कुछ विरले लोग ही इस बात को मानते हैं। जब दहेज की मंडी ही न सजे, तो कोई दहेज कैसे ले पाएगा?  इसलिए, सब लोगों को दहेज मंडी के खिलाफ आना पड़ेगा, दहेज दानव के समूल नाश के लिए प्रण लेना पड़ेगा!! 🙏💐

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