"विसंगतियों का दौर"
"व्यवस्था अनेक विसंगतियों से जूझ रही....
झूठ और कुतर्को भरी राजनीति हो रही;
तुगलक की तरह नीतियाँ तय हो रही;
आंकड़ों का ढिंढोरा पीटा जा रहा;
चौतरफा विकास बस फाइलों में हो रहा;
रटन्तु तोता की तरह गुणगान हो रहा!"
"बयानों के अनुसार पक्ष-विपक्ष तय हो रहा;
अपराध 'दिन दूना-रात चौगुना' बढ़ रहा;
जाति-धर्म से आरोपी दोषी-निर्दोष हो रहा;
हैसियत देख न्याय की संकल्पना तय हो रही;
असहाय के लिए न्याय दूर की कौड़ी लग रही!"
"लोकतंत्र अब कुलीनतंत्र बन रहा;
मौका देख दल-बदल हो रहा;
सत्ता के लिए सिद्धांत टूट रहा;
भाई-भतीजावाद चंहुओर दिख रहा;
हर बात में वोट-बैंक बनाया जा रहा;
सर्वजन हिताय की जगह स्वार्थ सिद्ध हो रहा;
मैं ही राजा बना रहूं, मानसिकता घिर रहा;
ईनामदार परेशान और बेईमान मौज मना रहा!"
"उच्च वर्ग उच्चतम स्तर प्राप्त कर रहा;
मध्यमवर्ग चक्की के पाटों बीच पिस रहा;
निम्न वर्ग राजनीति का शिकार हो रहा!"
"फर्जी खबरों का मायाजाल फैल रहा;
अफवाहों पर विश्वास किया जा रहा;
असहमत होने पर गलत बताया जा रहा;
विरोध की आड़ में अराजकता बढ़ रहा;
कट्टरता का विष-बेल बोया जा रहा;
भौकाल के लिए पागलपन बढ़ रहा;
अधिकारों का दुरूपयोग हो रहा;
कर्तव्यों से मुंह मोड़ा जा रहा;
सच्चाई को सूली चढ़ाया जा रहा;
नैतिकता बस बातों में ही दिख रही;
अंतरात्मा की आवाज दबायी जा रही;
पतन की पराकाष्ठा बढ़ रही!"
"आधुनिकता में अनैतिकता प्रदर्शित हो रहा;
चलचित्रों में अश्लीलता खुलेआम दिख रहा;
हिंसा, गाली-गलौज का प्रचलन बढ़ रहा;
सदाचार को पिछड़ापन बताया जा रहा;
आजादी में मनमानी का समर्थन हो रहा;
अनुशासन को अवरोध नाम दिया जा रहा!"
"समाज एक अजीब संक्रमण दौर से गुजर रहा;
यह किसी को भला तो किसी को बुरा लग रहा!!"