नेह अर्जुन इंदवार
परिवार में हर माता-पिता अपने संतान को बुद्धिमान, होशियार, शिक्षित, आज्ञाकारी, ईमानदार, कामयाब इंसान बनाने की चाहत रखते हैं और इसके लिए अपनी सामर्थ्यानुसार कोशिश भी करते हैं।
हर समाज की सामूहिक चेतना भी माता-पिता की तरह ही अपने परिवार और सामाजिक सदस्यों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से सामर्थ्यवान देखना चाहता है।
राज्य और राष्ट्र की सामूहिक चेतना भी यही चाहत रखता है।
लेकिन परिवार, समाज और राष्ट्र के सकारात्मक लक्ष्य और चिंतन में तब व्यवधान उत्पन्न हो जाता है, जब इसमें नकारात्मक स्वार्थ और चिंतन हावी हो जाता है।
किसी भी राष्ट्र के विकास यात्रा में ये दुर्गुण ही मुख्य बाधक होते हैं। ताईवान, सिंगापुर, जापान, लग्जेमबर्ग, स्वीट्जरलैंड, हॉलैंड आदि बहुत छोटे देश हैं और उनके देश में प्राकृतिक संसाधन नहीं के बराबर हैं, लेकिन ये देश मानव विकास के उच्चतम प्रतिमान सूचकों को हासिल करके आज दुनिया में विकसित राष्ट्र के रूप में अपने परचम लहरा रहे हैं।
इतना तो तय है कि यदि मानव विकास के प्रतिमान सूचकों का कुशल और सच्चा नैतिकपूर्ण रूप से प्रबंधन न हो तो प्रचुर प्राकृतिक संसाधन भी विकास की गति को त्वरित रूप से आगे बढ़ाने में असफल रहते हैं। यदि नागरिक बुद्धिमान, होशियार, शिक्षित, ईमानदार न हों तो तमाम विकासात्मक प्रतिमान खुद मंदबुद्धि, अशिक्षा, बेईमान दुर्गुणों का शिकार हो जाते हैं और ये नकारात्मक प्रतिमान नकारात्मक रिजल्ट की मात्रा को बढ़ा कर विकास की गति को अवरूद्ध कर बैठता है।
भारतीय राजनैतिक दृष्यमान में अधिकतर राजनीतिज्ञ, प्रशासन के पुर्जा के रूप में काम करने वाले अफसरशाही, बेईमानी, भ्रष्टता के रास्ते मंदबुद्धि के चरम स्थिति को प्राप्त कर रहे हैं। वे येन-केन-प्रकारेन सीमाहीन पैसा कमाने और संसाधन लूटने, बटोरने के कार्य में लगे हुए हैं।
वे अपनी बेईमानी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए नीचता की हद तक चले जाते हैं। उनकी बेईमानी, भ्रष्टता, कुटिलता उन्हें राष्ट्र के सबसे घटिया, नीच इंसान बना देता है और ये लोग ही राष्ट्र के उन्नति में मुख्य बाधक बन कर सामने आते हैं। भारतीय समाज और पूरी सरकारी व्यवस्था को यही लोग घुन की तरह अंदर से काट-काट करके खोखला बना रहे हैं। इन नीच और बेईमान लोगों की नीचता और बेईमानी को ओट देने, उन्हें समर्थन देने के लिए विशाल पार्टीगत समर्थकों की मंदबुद्धि भीड़ भी देश को खोखला बनाने के कार्य में अपना हाथ बँटा रहे हैं। राजनैतिक नेतृत्व, मीडिया और आर्थिक-मुद्रा बाजार नीचता और बेईमानी की मिशाल बने हुए हैं, और देश को सरातल में ले जाने में यही अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा ईमानदारी के उलट बेईमान-शोषक व्यवस्था में बदल गए हैं। ये दोनों ईमानदारी के किसी भी बीज को सींचने से साफ इंकार करते हैं।
अंध राजनैतिक समर्थन के बल पर राजनीति से जुड़े नेतागण देश को न सिर्फ खोखला बना रहे हैं, बल्कि ये हर नागरिकके विकास के पथ को सार्वजनिक रूप से अवरूद्ध कर रहे हैं। पूरी व्यवस्था को ही ये अपने जहर-डंस से जहरीला बना बैठे हैं। एक राजनैतिक पार्टी, एक जाति और वर्ग, एक स्वार्थ ग्रुप और उससे जुड़े घटिया एकांगी स्वार्थ को समर्थन करने की
विभाजनकारी सोच-चिंतन और कार्यकलाप ने पूरे देश की नींव को ही हिला कर रख दिया है।
26 जनवरी, 15 अगस्त जैसे दिन की सुबह को पूरे देश में देशप्रेम की एक लहर पैदा होती है, जो शाम होने के बाद मर भी जाती है। सच्चा देशप्रेम, देश भक्ति या सच्चा नागरिक का क्या कर्तव्य होता है, इसे किसी भी तरह और किसी भी स्वरूप की बेईमानी, स्वार्थ की मंदबुद्धिमता में जीवन जीने वाला कभी नहीं जान सकता है।
ऐसे लोग नीचता की पराकाष्ठा में जीवन जीते हैं और वे यह कभी नहीं जान पाते हैं कि उनके एकाकी स्वार्थी चिंतन और कार्यकलाप से देश और समाज का कितना नुकसान होता है। जिन माता-पिता की संतान बुद्धिमान, होशियार, शिक्षित, आज्ञाकारी, ईमानदार नहीं होते हैं, वे अपने माता-पिता से लेकर पूरे राष्ट्र और इंसानियत के चरमबिन्दु तक कहीं भी बुद्धिमान, होशियार, शिक्षित, आज्ञाकारी, ईमानदार नहीं होते हैं। वे जिंदगी भर बुद्धिहीन स्वार्थी बेईमानी की जिंदगी जीते हैं और उसे ही वह कामयाबी की पराकाष्टा समझते हैं। ऐसे लोग पूरे देश को आगे बढ़ने की जिजीविषा में जाने-अनजाने जहर घोल रहे होते हैं, उसके बारे उन्हें किंचित भी जानकारी नहीं होती है। उनका दिमाग परोपकारिता, इंसानियत, परिवार और राष्ट्र के सार्वजनिक हित की अंतरगुंफित बातों को कभी समझ नहीं पाता है।
किसी देश और समाज के अविकसित होने का मुख्य कारण यही है। यही बातें भारत को जापान, सिंगापुर, लग्जेम्बर्ग, ताईवान, उत्तर कोरिया जैसे देशों से अलग करता है। इन देशों के नागरिकों के खून में इंसानियत के सर्वोच्च गुण बहता है, और भारत में सिर्फ 26 जनवरी और 15 अगस्त को लोगों के दिल में ईमानदार, बुद्धिमानीपूर्ण देश प्रेम हिल्लोरे मारता है, जो उसी दिन शाम को मर भी जाता है।