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“गीतिका” छिछले मन प्रवाहों में

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मापनी- 2112, 2222, 2222, 1222, समान- अन, पदांत- आहों में.....“गीतिका” देख रहा हूँ आज तुझे मैं अपने उन निगाहों में छोड़ गए तुम अंगुली को छिछले मन प्रवाहों में याद करो न थी कोई खींचातानी मयखानों की थी न कोई वला गिला नाहीं शिकन परवाहों में॥ आज खड़े हो लेकर डफ़ली बजा

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