शुक्रवार 06 September की रात, शनिवार 07 September की सुबह, "इसरो" केंद्र बैंगलौर, चंद्रयान 2, विक्रम लैंडर , के. सिवान या फिर नरेंद्रमोदी अपनी पसंद का शीर्षक चुन लीजिये।
मैं जो लिखने जा रहा हूँ, उसकी विषय वस्तु इन शीर्षकों के इर्द गिर्द है, या यूँ कहिये, बस एक ऐसी गड्डमड्ड खिचड़ी है जिसमें इनमें से कोई दाल है, कोई चावल, कोई रायता, कोई पापड़।
उस दिन क्या क्या हुआ, यह सब लगभग सभी ने देखा, फिर कुछ लोग परेशान हुये, कुछ प्रसन्न, कुछ खिन्न हुये, कुछ झुंझलाये वगैरह वगैरह। मीम बने, इसकी और उसकी आई टी टीमें मुद्दे की फजीहते करती रहीं, और मीडिया "मोदी की मुट्ठी में चाँद " से "विक्रम बोल न यार" तक में झूलता रहा।
मैं घटना क्रम के मंच के कुछ दृश्यों को अपनी नजर से प्रस्तुत करने की धृष्टता करूँगा, और चूँकि यह मेरा नजरिया होगा इसलिये हर तरह की टिप्पणी का बिना प्रतिकार सम्मान करूँगा! "अंगूठा" दिखा कर।
प्रखर वैज्ञानिकों का एक समूह, आदरणीय चेयर मैन श्री के सीवान का नेतृत्व और पूरे देश या फिर विश्व के बड़े भाग की उम्मीदों का भार, संभवतः एक अरब से अधिक उम्मीदें, किसी भी व्यक्ति या संस्था ने इससे पहले यह दबाव शायद ही महसूस किया हो। तभी देश के निर्वाचित प्रमुख संस्था के सभागार में उपस्थित होते हैं। अब यह व्यवस्था अनायास नहीं बनी थी।और चूँकि यह व्यवस्था पहले से तय थी, तो प्रधानमंत्री, कब आयेंगे, कौन उनका स्वागत करेगा, कौन उनके साथ बैठेगा और कौन उन्हें ब्रीफ करेगा, यह उत्तरदायित्व पहले से ही तय थे।
"विक्रम" तेजी से चंद्रतल की ओर चल रहा था, उसकी गति को सफलता पूर्वक मंदित कर लिया गया था, और उस कक्ष में सब उत्साहित थे, प्रधानमंत्री भी करतल ध्वनि करते हुये देखे गये। लेकिन यकायक एक सन्नाटा पसर गया। 2.1 किलोमीटर की ऊचाई पर विक्रम छुप गया, और मानो कहने लगा, ढूंढ़ सको तो ढूंढ़ लो। सब चिंतित थे। विश्व की उम्मीदें भी कुछ देर हाँफ रहीं थी।
दर्शक दीर्घा में प्रधानमंत्री को किसी ने "पैनिक" देखा कि नहीं, पर मुझे वो अपने स्थान पर सूचना की प्रतीक्षा करते हुये दिखे, हाँ चिंतित वो भी थे, जैसे कि आप और हम।
अब थोड़ा सा थमते हैं।और अपने दफ्तर, घर और आसपास के दृश्यों को खंगालते हैं।
दफ्तर में एक टीम पूरे जोर से लक्ष्य पानें में लगी है, पूरे जोर के बावजूद लक्ष्य से 2.1 कदम पीछे रह जाती है, अब यह सूचना आगे देने का दायित्व किसका होगा - टीम मुखिया का, या टीम मुखिया किसी को भी आगे भेज दे , कि जाओ जो हमारे वरिष्ठ हैं परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनको बता आओ कि ऐसा हो गया है।
पिता जी द्वारा निर्धारित लक्ष्य से 2.1% कम अंक आने पर, प्रयास यही करते हैं न कि मम्मी किसी तरह पापा को बता दें।
हर जगह आसपास सफलता, असफलता का पैगाम मुखिया ही अपने वरिष्ठ तक पहुँचाने का स्वाभाविक उत्तरदायी समझा जाता है, व्यवहार में।
इसी व्यावहारिक परंपरा में, मिशन के प्रमुख ने प्रधानमंत्री को सूचना दी, उन्होंने क्या कहा, यह तो संभवतः हम तभी जान पायेंगे जब उस संवाद का कोई पात्र अपनी "सच्ची आत्मकथा" लिखे। परन्तु उनका आशय कुछ यह रहा होगा कि हम अभी भी प्रयासरत और आशान्वित हैं।
प्रधानमंत्री ने संभवतः सहमति दी, और मिशन प्रमुख वापस प्रबंधन/संचालन में व्यस्त हो गये।लगभग 03 बजे प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिक दल को एक संक्षिप्त सांत्वनामय और उत्साहवर्धक संबोधन दिया और "Hope for the best" कह कर विश्राम के लिये चले गये।
वैज्ञानिक दल इस अप्रत्याशित स्थिति का संचालन प्रबंधन करता रहा। लगभग 08 बजे प्रधानमंत्री ने मुख्यालय वापस आकर देश को, वैज्ञानिकों संबोधित किया।और फिर मुख्यालय से विदा होते समय एक दृश्य सामने आया, जिस पर कुछ इस तरह की टिप्पणियाँ आईं हैं अबतक
"पनौती" मोदी के कारण मिशन असफल।
"VIP Syndrome" का शिकार हुआ मिशन
"कपड़े बदल" कर नाटक करने आये थे PM
"कैमरे को दिखाने के लिये तमाशा किया है।"
और भी बहुत कुछ।
अब ये तमाशा था या जिम्मेदार नेतृत्व यह सिवान ही बता सकते हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि सिवान जी को संसार की बड़े से बड़ी सफलता प्रदान करे और यदि संभव हो तो उन्हें प्रेरित करें कि जब कभी समय आलोचकों की परिभाषा में "अनुकूल" हो तब वो अपने सच्चे भाव अवश्य प्रकट करें।
#जय_श्री_राम
#जय_ISRO
विश्वस्य सेवार्थ़ अंतरिक्ष प्रद्यौगिकी