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गांधी का भारत या गोडसे का भारत

27 सितम्बर 2016

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दिनांक19मई2012



आजकल देश में चर्चाओ का एक दौर है जिसमे गांधी की जम के बुराई हो रही है , उन्हें आज देश की सारी समस्याओं की जड़ के रूप में देखा जाने लगा है , तथ्य भी है , साक्ष्य भी जुटाए जा रहे है , सूचना के अधिकार का प्रयोग भी हो रहा है , पर प्रश्न यह है की इस सबसे क्या होगा ??


क्या गांधी को कोसने से पाकिस्तान का भारत में पुनार्विलय हो जायेगा , या फिर तथाकथित सेकुलर लोगो की मानसिकता में बदलाव आ जायेगा , नहीं आज भारत की विश्व में आर्थिक सामरिक जैसी भी पहचान है , पर राजनीति क पहचान मोहन दास करम चंद गांधी ही है , अमेरिका . अफ्रीका यूरोप के तमाम देश उस सत्य और अहिंसा की क्रान्ति को ही कीर्तिस्तम्भ मानते है और जब इन देशो में कोई भारतीय पहुँचता है तो महात्मा गांधी ही वह राजनीतिक नाम है जिसके देश का उसे माना जाता है नहीं तो लोग शाहरुख खान , अमिताभ को ही जानते है


भले ही भारत में कदम कदम पर , गली गली में , हर कार्यालय में और हर भ्रष्टाचार का साक्षी आज महात्मा गांधी हो पर विश्व में उसकी पहचान उस सशक्त व्यतित्व के रूप में है जिसने विश्व के शक्तिशाली साम्राज्य को बिना कोई शस्त्र उठाये हिला के रख दिया


आज हिंदुत्व की विचारधारा के समर्थक लोग अनेको प्रकार से यह सिद्ध करना चाहते है की आज जो भी दशा है उसके पीछे गांधी ही एक मात्र दोषी है पर हम यह भूल रहे हैं की ये सभी संस्थाए आज के समाज में अच्छी छवि नहीं रखती , कारण चाहे जो भी हो ,


उदाहरण के तौर पे भगत सिंह के आंदोलन से जुड़ने से पहले भी राष्ट्र में क्रांतिकारी थे पर उनकी छवि आतंकवादी के तौर पे अधिक थी , भगत सिंह ने जागरूकता अभियान चलाकर क्रान्ति को देश की जनता से जोड़ा और यह स्पष्ट किया की उनकी क्रान्ति का उद्देश्य कौमी एकता , पूर्ण स्वराज्य है तब उनके आंदोलन को ना केवल व्यापक जनाधार मिला बल्कि स्वतन्त्रता आंदोलन को त्वरित गति भी प्राप्त हुई और उसका व्यापक परिणाम हुआ की स्वतंत्रता शीघ्र प्राप्त हो गयी ,


पर इसका सम्बन्ध आज के भृष्टाचार विरोधी आंदोलन से कैसे है , बिलकुल है , आज गोवंश की हत्या के चित्र दिखाकर , इतिहास में गांधी के हिंदू विरोधी निर्णयों के आकडे गिना कर जनाधार तैयार नहीं किया जा सकता , हिन्दुस्थान की प्रगति के लिए हिंदुत्व की उन्नति अत्यावश्यक है , उसके लिए हिंदुत्व की रक्षा के लिए अपने को स्थापित करने वाली संस्थाओं को जनाधार जुटाना होगा , उन्हें यह स्पष्ट करना होगा उनका उद्देश्य भी धार्मिक साम्य ही है , वे भी भृष्टाचार विरोधी है , केवल कांग्रेस या गांधी विरोधी नहीं स्वयं को प्रगतिवादी सोच का भी सिद्ध करना होगा , एक बार जनाधार जुट गया क्रान्ति की सफलता दूर नहीं रहेगी फिर चाहे यह गोडसे का भारत बने या गांधी का भारत , हमारे सपनो का होगा जिसमे सभी लोग प्रगति करेंगे !


धन्यवाद -शैलेन्द्र दीक्षित

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