हमारे बचपन और उससे थोड़ा पहले प्लास्टिक घरों की आदत नहीं था।
प्लास्टिक स्वयं एक विकल्प था! कागज,कपड़े, काँच, मिट्टी एवं धातु की वस्तुओं का! और ये विकल्प कहीं चले नहीं गये।
बस हमारे जैसे थोड़े बहुत सक्षम लोगों ने इनकी माँग घटा दी है इसलिये आपूर्ति प्रभावित है।
भंडारण के लिये धातु, मिट्टी या काँच के पात्र लाइये!
सामान लाने ले जाने के लिये जूट के थैले, कागज के लिफाफे इस्तेमाल कीजिये।
बस बहाने बनाना बंद कीजिये कि व्यवहार में आ चुका है।
जब हम शरीर में कोई रोग लेकर चिकित्सक के पास जाते हैं तो अक्सर एक बात सुनते है कि इस रोग का कारण आपकी जीवन-शैली है(अर्थात् दैनिक व्यवहार)।
वह हमें प्रातः उठ कर टहलने को कहता है, 40 मिनट व्यायाम को कहता है, औषधि देताहै और बताता है कि कब कब क्या क्या खाओ और क्या क्या न खाओ तब हम उससे यह नहीं कहते कि
1! पहले मेरे बाॅस, मेरी पत्नी/पति या संतानों पर भी यही प्रतिबंध लगाओ
2!नहीं नहीं यह जीवन शैली अब व्यवहार में आ चुकी है, पिछली (कखग) वर्षों से यही कर रहा हूँ, रोगी रह लूँगा पर जीवन शैली (व्यवहार) नहीं बदलूँगा।
3!जब तक आप इस जीवन-शैली का व्यावहारिक विकल्प नहीं ले आते तब तक मैं रोगी ही रहूँगा।
4!आपने केवल मेरी जीवन शैली बदली, मेरे बाॅस की नहीं क्योंकि वो आपकी क्लीनिक के लिये फंड देते हैं।
5!क्या आप चिकित्सीय परंपराओं के वर्षों पुराने नुस्खों में से कुछ तलाश सकते हैं जिससे मैं ठीक हो जाऊँ?
प्रदूषण एक रोग है
प्लाॅस्टिक उसका एक कारक है।
अब वह चाहे व्यवहार में आ चुका है , चाहे उसपर प्रतिबंध लाने वाली सरकार भाजपा की हो या महागठबंधन की, चाहे उद्योगपति प्रभावित हों या चाहे किसी पार्टी का फंड बढ़ता हो अथवा चाहे मेरी परंपराओं को चुनौती मिले
मैं, कप्तान शैलेंद्र दीक्षित पाॅलीथीन पर लगे प्रतिबंध का स्वागत करता हूँ और यह आग्रह करता हूँ कि आप भी इस प्रतिबंध का समर्थन करें।सरकार को विवश करें कि वह इस प्रतिबंध को चरणबद्ध तरीके से विस्तार दे।तब तक हम अपने स्तर से हर संभव सहयोग दे।
धन्यवाद!!