मैं हूँ भी और नहीं भी इस बात की खबर है मुझे...
तू है कहीं मेरे लिए , ये बात किसको पता..
मेरे आँखों में निखिल आजकल सपने रहते है..
और तुम रहती हो दिल में , ये बात किसको पता..
के तरस उठी है ऑंखें तेरे दीदार को...
तुझे देखे बिना ही तेरी चाहत ने मुझे तबाह किया ,
ये बात किसको पता..
इस दीवानगी की इन्तेहाँ तुम क्या जानो...
मैं जनता हूँ बरसों से , ये बात किसको पता..
तू आज भी है और कल भी रहेगी..
तुम सिर्फ मेरी हो , ये बात किसे पता..
निखिल पूछता रहता है खुदा से कि कहाँ है मेरी ज़िंदगी..
जबाब आता है साबर कर , ये बात किसको पता ? ...निखिल रंजन माल्या।