छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में लगभग 4 दशक से ज्यादा का समय बीता चुके, 23 जून 1948 को जन्मे, एम ए जोसेफ जी मूलत: केरल के कोटयम जिले से आते हैं। 1954 में पिताजी के साथ पूरा परिवार मध्यप्रदेश आ गया। पिताजी की नौकरी के दौरान भोपाल,गंज बासोदा, मुरैना, शाजापुर में रहना हुआ। मुरैना में मिडिल स्कूल की पढ़ाई पुरी की, शाजापुर से बीए किया फिर आ गए छत्तीसगढ़। जोसेफ जी ने छत्तीसगढ़ कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए किया। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उनके अंदर का लेखक सक्रिय हुआ। कई राष्ट्र्रीय पत्रिकाओं में वे अपने लेख भेजा करते थे, उनके लेख छपते थे, उन्हीं दिनों 1969-70 के बीच नवभारत के लोकवाणी कॉलम में भी उनके लेख छपने लगे। तभी अचानक उन्हें नवभारत से कॉल आया, जहां नवभारत में उस दौर के 4-5 बड़े दिग्गजों ने एकसाथ उनका इंटरव्यू लिया फिर शुरू हुआ ट्रेनिंग का दौर। नवभारत में ट्रेनी के रुप में एक साल तक अखबार के अलग-अलग विभागों में उन्होंने काम सीखा। वे बताते हैं कि हर विभाग में उन्होंने एक सीनियर के अंडर काम सीखा। वे बताते हैं कि जिस विषय में रुचि न हो उस पेज पर भी काम करना अलग अनुभव रहा। एक साल की ट्रेनिंग के बाद शुरू हुई रिपोर्टिंग की पारी, कैसी रही ये पारी आगे जरुर पढिये...
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दंगों का जीता जांगता मंजर लिखना भयावह था
1971 से नवभारत में सिटी रिपोर्टर के तौर पर मैदान में उतरे जोसेफ जी, वे बताते हैं कि 1971 से 1983 तक उन्होंने एक सीनियर के अंडर में रिपोर्टिंग की। शुरुआत से ही खबरें देने में काफी अग्रणी रहे, उनकी खबरें निरंतर छपने लगीं, उनकी रचनात्मक रिपोर्टिंग हो या खोजी रिपोर्टिंग, एम ए जोसेफ की चर्चा लाजमी हो चली थी, फिर एक अवसर आया। 1979 में जमशेदपुर में दंगा हो गया, दंगे की खबर आग की तरह फैल गई। उसी दिन रात में 10 बजे जोसेफ जी को जमशेदपुर रवाना कर दिया गया। वे वहां पहुंचे तो चारों तरफ सन्नाटा पसरा था, ऑफिस की तरफ से दिए एक पते पर पहुंचे, ये पता उदितवाणी अखबार के संपादक का था, जिनसे कर्फ्यू पास मिला। फिर वे दोनों घटनास्थल पर पहुंचे, वहां का मंजर बेहद खतरनाक था, जिसकी पूरी रिपोर्टिंग जोसेफ जी ने की, मीडिया से मौके पर पहुंचने वालों में जोसेफ जी पहले व्यक्ति थे, जोसेफ जी जब पहुंचे तब तक नेशनल मीडिया के भी कोई रिपोर्टर नहीं पहुंचे थे उन्होंने दंगे की विस्तृत रिपोर्टिगं की। उन्होंने उस समय के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर से मुलाकात कर उनका इंटरव्यू भी लिया। [जमशेदपुर उस समय बिहार के ही अंतर्गत आता था]और दूसरे दिन नवभारत में पूरे एक पेज की रिपोर्ट छपी। ऐसा ही दंगा 1984 में रायपुर में हुआ, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद रायपुर के बॉम्बे मार्केट में एक समुदाय विशेष की तरफ से जश्न मनाने की खबर शहर में आग की तरह फैली और दंगे भड़क उठे। उस वक्त नवभारत से बड़े-बड़े दिग्गज पत्रकारों के जाने का सिलसिला शुरू हो चुका था, गोविंदलाल वोरा ने अमृत संदेश अखबार निकाला तो नवभारत के आधे से ज्यादा लोग उनके साथ हो लिए लेकिन जोसेफ जी उस वक्त नहीं गए, तब रायपुर में ज्यादातर रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी उन्होंने ही संभाली। 1984 के दंगों की पूरी रिपोर्टिंग जोसेफ जी ने की। वे बताते हैं कि विनोद माहेश्वरी जी ने उन्हें और ट्रेनिंग दी, उस वक्त उनके साथ फोटो पत्रकार गोकुल सोनी जी हर घटना की रिपोर्टिंग में साथ रहा करते थे, जिन्होंने अपने कैमरे में रायपुर की कई ऐतिहासिक घटनाएं और कई अभूतपूर्व पल कैद किए। जो घटनाक्रम हुआ उसके बारे में अखबार के शीर्ष नेतृत्व ने जैसा कहा वैसा जोसेफ जी ने छाप दिया। उस वक्त खूब अफवाहें भी उड़ा करती थीं, दंगाईयों ने राज्य परिवहन का डिपो जला दिया, खूब सारी बसें जला दीं, ऐसी आग लगी कि पूरा रायपुर शहर में अंधेरा छा गया,रायपुर में सेना भी बुला लही गई थी- ऐसे जोखिम भरे हालातों की जीवंत खबरें समेटना और उसे छापना बेहद चुनौतीपूर्ण काम होता है, जिसकी पल-पल की जानकारी नवभारत में छपी।
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एक रिपोर्ट और शुक्ल बंधुओं से पंगा !
पत्रकारिता जीवन में अक्सर चर्चा उनकी होती है जिनकी खबरें बोलती हैं, ऐसी खबरें जो हर तरफ कोहराम मचा दे, ऐसी ही एक खबर छापी एम ए जोसेफ जी ने, खबर थी विद्याचरण शुक्ल से जुड़ी। 1984 में इमरजेंसी के बाद चुनाव का मौसम था, लोकसभा प्रत्याशी विद्याचरण शुक्ल और पुरुषोत्तम कौशिक चुनावी मैदान में थे। उस वक्त सप्रे स्कूल के छात्रों के बीच एक गेलअप पोल किया गया, जिसके नतीजे ये निकले की इस बार चुनाव में विद्याचरण शुक्ल की हार होगी। उस वक्त अपने सीनियर से पूछकर उन्होंने ये खबर छाप दी, नवभारत को शुरू से ही गजट-राजपत्र के तौर पर पढ़ा जाता रहा, अखबार में छोटी सी खबर छपी थी जिसमे श्री विद्याचरण शुक्ल को हारा हुआ तथा पुरूषोत्तम कौशिक को जीता हुआ प्रत्याशी बताया गया लेकिन जब इस बात की जानकारी विद्याचरण शुक्ल खेमे को लगी तो रात में ही नवभारत के दफ्तर में प्रशासनिक अमला पहुंच गया, छपते-छपते अखबार को रुकवा दिया गया, लेकिन कुछ कॉपियां बंटने को चली गई, शुक्ल के निर्वाचन क्षेत्र तक भी निकल गई थी...दबाव बना कि जिसने खबर छापी है उसे तत्काल हटाया जाए, तब अखबार के मालिक ने स्पष्ट कर दिया था कि हमारे यहां ऐसी परंपरा नहीं है कि किसी को नौकरी से निकाला जाए, इस बात की पैरवी गोविंदलाल वोरा जी ने भी की। जोसेफ जी को सिटी रिपोर्टर से हटाकर प्रिंटर के पेज पर ड्यूटी लगाई गई। दिलचस्प ये रहा कि जब चुनाव के नतीजे आए तो वास्तव में विद्याचरण शुक्ल हार गए थे।
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जोसेफ जी का तगड़ा खबरी नेटवर्क
खबरी नेटवर्क ...जी हां, पत्रकारिता की दुनिया में सूत्र और इन्हीं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पुख्ता खबरें छापने में हमेशा जोसेफ जी की रिपोर्ट्स सबकी आंखों में चढ़ी रहीं।
एक वाक्या याद करते हुए वे बताते हैं कि उन्होंने पूर्व सीएम अजीत जोगी के घर के अंदर से एक दिलचस्प स्टोरी निकाल ली, खबर ये थी कि जोगी बंगले में हर दिन नौकर कपड़े धुलने ले जाता था, एक दिन रेणु जोगी ने पूछा कौन-कौन सी साडियां धुलने जा रहीं है, उन्होंने देखा तो अचानकर से एक टिफिन
नीचे गिरा, ढक्कन खुला तो जमीन पर पैसे ही पैसे बिखर गए....जोसेफ जी को खबर लगी, उन्होंने पड़ताल की तो पता चला कि वो नौकर हर दिन ऐसे ही जोगी बंगले से पैसे ले जाता था और उसने भोपाल में आलीशान घर भी बना लिया था। ये खबर जोसेफ जी ने एक्स्क्लूसिव छापी, दिलचस्प ये है कि इस बात की जानकारी जोगी परिवार के किसी सदस्य से नहीं मिली इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके सोर्स बेहद मजबूत रहे। एक और बेहतरीन रिपोर्टिंग जोसेफ
जी की, जो जुड़ी थी पुलिस के बड़े अफसर की दादागिरी से, एक शीर्ष अफसर अपने बंगले में अलग-अलग सरकारी विभागों से संपर्क साधके अपना काम करवाते थे। उस वक्त पुलिस के कई अधिकारी-कर्मचारी बड़े परेशान भी रहा करते थे।जिस खबर पर आपत्ति हुइ वह था उनके घर पर लगे आम के वृक्ष में लगे आम को बचाने का इसके लिये उन्होंने अलग अलग विभागों से सामान मंगवाये जिनमे सीढ़ी विद्युत मंडल से जाल कृषि विभाग से तो मजदूर पीडब्लू डी से आदि- जोसेफ जी को खबर लग गई, उन्होंने तथ्यों के साथ खबर छाप दी, दूसरे दिन कोतवाली से फोन आ गया कि साहब ने बुलाया है। जोसेफ जी गए, तो साहब बमके हुए थे उन्होंने पूछा आप ही हैं, जो छापे हैं, आपने मुझसे पूछा। इसपर जोसेफ जी ने जवाब दिया, पूछने की जरुरत ही नहीं है, आपने जो किया वो छापा है। फिर साहब कहने लगे, आपने तो मुझे बदनाम कर दिया। जोसेफ जी ने कहा आप कहें तो खंडन छाप दूं। वे हड़बड़ाकर बोले, अरे खंडन नहीं...खंडन नहीं...खंडन करूंगा तो और मर जाऊंगा। जोसेफ जी कहते हैं वे वहां से कैसे निकले वे ही जानते हैं। एक ऐसा ही स्टिंग जोसेफ जी ने गोकुल सोनी जी के साथ मिलकर किया। रायपुर में शाम होते ही बहुत तेज बदबू फैल जाती थी, जिससे हर कोई परेशान रहा करता था। ये बदबू कुम्हारी की तरफ से आती थी। जोसेफ जी निकल पड़े केडिया डिस्टलरी की हकीकत जानने। फैक्ट्री में कहीं से भी घुसने नहीं दिया जाता था, बेहद कड़ी सुरक्षा थी ऐसे में वे और गोकुल सोनी जी कुम्हारी साइड से एक नाव में खारुन के सहारे फैक्ट्री के पास जैसे-तैसे पहुंचे, वहां उन्होंने देखा कि जितना भी अपशिष्ट था उसे खारुन नदी में मिला दिया जाता था। इसकी रिपोर्ट छपी, हड़कंप मच गया। एक बार बिलासपुर में एक सांसद थे निरंजन केशरवानी, वे भिलाई से रायपुर आ रहे थे, कुम्हारी के पास उनका एक्सीडेंट हो गया, उन्हें डीके अस्पताल ले जाया गया। वहां जोसेफ जी का एक सोर्स था, उसने बताया, भैया ये आदमी तो खूब सारे पैसे रखा हुआ है, जो भीग गए है, 100-100 के नोट को कपड़ों की तरह सुखा रहा है बस फिर क्या था जोसेफ जी ने खबर छाप दी, बाद में उस सासंद ने दादागिरी भी दिखाई, लेकिन जोसेफ जी ने कहा खंडन लिखके दोगे तो छापेंगे। उस वक्त वोरा जी ने जोसेफ जी का सपोर्ट भी किया। वे बताते हैं कि एक बार तो उन्होंने नाप-तौल विभाग में अपने पिताजी के खिलाफ ही खबर छाप दी थी। तो ऐसे बेधड़क रिपोर्टिंग करते रहे हैं एम ए जोसेफ जी।
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उसूलों पर आंच न आए...
जोसेफ जी ने अपनी 4 दशक की पत्रकारिता में बेधड़क रिपोर्टिंग की, लेकिन कभी-कभी ऐसी रिपोर्टिंग भी करनी पड़ी, जिसके पीछे का स्याह सच, खबर छपने तक उन्हें पता नहीं होता था। जैसे कि केडिया डिस्क्लेरी का मामला, स्टिंग के बाद हड़कंप मचा, लेकिन बाद में भरपाई वाली रिपोर्टिंग के लिए भी भेजा गया, ले जाते समय फैक्ट्री वाले बड़े दुलार के साथ लेकर गए, लेकिन वहां जाने पर दुर्व्यवहार किया गया, एक वक्त तो ऐसा लगा कि उनकी जान पर बन आई। वे लौटे तो उनकी अपने संपादक से बहस हो गई। ऐसे ही एक बार उनके संपादक ने उन्हें एक फार्म की स्टोरी करने भेजा, पहली बार प्रेस की गाड़ी में उन्हें भेजा गया था। बहुत जी जान से जोसेफ जी ने रिपोर्टिंग की। ये स्टोरी विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ थी। जैसे ही खबर छपी सुबह 5 बजे विद्याचरण शुक्ल का फोन आ गया, उन्होंने कहा कि तुमने खबर तो छाप दी, अब अपने संपादक से पूछो कि नहर खुदवाने से किसकी जमीन में पानी नहीं जा रहा था। बाद में मसला ये निकला कि जिस जमीन में पानी नहीं जा रहा था वो संपादक की ही थी।
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छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की आंखो-देखी
नवभारत में 1969-70 से 1984 तक काम करने के बाद 1985 में वे अमृत संदेश चले गए, उसके बाद 5 साल बाद फिर उन्होंने नवभारत में वापसी की। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग सालों से बुलंद रही, लेकिन 90 के दशक में अलग ही क्रांति देखने को मिली। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग की हर एक खबर जोसेफ जी ने छापी। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हर पहलू से हर दिन राज्य निर्माण की खबरें छापी। वे बताते हैं कि विनोद माहेश्वरी जी ने उन्हें प्रोत्साहित किया कि राज्य निर्माण की खबरों को हमें हमेशा प्राथमिकता देनी है। इसलिए नवभारत में प्रमुखता से लगातार खबरें छपती रही, जिसे कवर किया एम ए जोसेफ जी ने। राज्य निर्माण की मांग से लेकर राज्य बनने तक के पूरे घटनाक्रम की अपनी रिपोर्टिंग पर आधारित उनकी एक पुस्तक है उदय छत्तीसगढ़, जो आज की पीढ़ी को राज्य निर्माण की सारी बारीकियां बताती है।
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दो बार नवभारत छोडऩे की वजह से वे संपादक बनने से चूक गए, उनके जूनियर को संपादक बना दिया गया, जो उन्हें सही नहीं लगा। जोसेफ जी ने हरिभूमि में भी काम किया इस साल जनवरी तक वे प्रखर समाचार का संपादन करते रहे। वे कहते हैं कि नवभारत में उन्हें बहुत प्यार मिला। जोसेफ जी की कई पहल आज तक कायम है, मेडिकल कॉलेज रायपुर हॉस्पिटल का शार्ट नेम मेकाहारा जोसेफ जी ने ही लिखना शुरू किया, चूंकि उस समय नामकरण नहीं हुआ था और आज भी लोग अस्पताल को मेकाहारा के नाम से ही जानते हैं।मेेकहारा का पूरा नाम उन्होंने बताया मेडिकल कालेज हास्पिटल रायपुर, ऐसे ही राज्य बनने के बाद विधानसभा भवन को लेकर जगह तलाशने का काम चल रहा था, जोसेफ जी ने विधानसभा रोड में विवादित जमीन के बारे में छापा, जो उन्हें विधानसभा भवन के लिए मुफीद लग रही थी, साथी पत्रकार मोहन राव और कुछ पत्रकारों ने भी इसकी रिपोर्टिंग की। अंतत: विधानसभा भवन वहीं बना। रायपुर के घड़ी चौक का सुझाव भी जोसेफ जी ने आरडीए के चेयरमैन को प्रेस क्लब में प्रेस से मिलिए कार्यक्रम के दौरान दिया। जोसेफ जी तीन बार प्रेस क्लब के अध्यक्ष, दो बार महामंत्री रहे। उनकी पत्रकारिता आज की पीढ़ी के लिए आदर्श पत्रकारिता है जो जोखिमों से खेलती है, तो समाज का स्याह पहलू भी समाने रखती है, पत्रकार का भटका मन बताती है लेकिन उसूलों के साथ जीना भी सिखाती है।