इन्सान क्या है? इच्छाओं से संचालित एक जीवित प्राणी या कुछ और...? जन्म से मृत्युपर्यंत वह अभाव में जीता है। यह अभाव ही इच्छा के रूप में उसे संचालित करती है।धन ,दौलत ,शोहरत ,काम -वासना ,सुख ,समृद्धि आदि ऐसी ही कुछ इच्छाएँ है। एक कभी न खत्म होने वाली तृष्णा मानव जाति की नियति है; संसार के रंगमंच पर उभरने वाले हर चेहरे के पीछे उसकी यही तृष्णा है। तो फिर महानता का ढोंग क्यों? संसार में कोई किसी का मसीहा नहीं ,हर व्यक्ति अपना भाग्य विधाता स्वयं है। यह वर्तमान की आवश्यकता भी है ,क्योंकि मानव जाति का स्वर्णिम भविष्य चापलूसों की फौज द्वारा सम्भव नहीं ;यह कार्य स्वाभिमानी और आत्मविश्वासी लोगों द्वारा ही किया जा सकता है।