कैसी हो। हम अच्छे हैं ।बस इस फोन से परेशान हैं।ये दुश्मन बना हुआ है तुम्हारी और हमारी मुलाकात मे।बार बार हैंग हो जाता है ।कभी कभी तो इतना तंग करता है पूरा लेख लिख लेगे और एक झटके में ही सारा साफ हो जाता है।हमें फिर से दोबारा लिखना पड़ता है।खैर इस फोन से हमारी बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं ।
यादें बहुत सी होती है अच्छी भी बुरी भी, कोई कोई ऐसी याद होती है वह भुलाए नहीं भूलती और किसी याद को याद करने का मन ही नहीं करता। आज का विषय हमारी इस कहानी पर खरा उतरता है।
"सुहानी शाम ढल चुकी।ना जाने तुम कब आओगे।"
रेडियो पर गीत बज रहा था।सुधा जी अपने कमरे मे बैठी।कमरे के बाहर बगीचे का नजारा ले रही थी।शाम ढल रही थी।काफी दिनों से तेज गर्मी पड़ रही थी।आज सुबह भी मौसम काफी गर्म था। सूर्य देवता चिलचिलाती धूप की बिजलियां गिरा रहे थे अचानक शाम चार बजे बाद मौसम ने करवट बदली ठंडी हवाएं चलने लगी । आकाश मे काले काले बादल छा गए थे।ठंडी पूरवा चल रही थी।सुधा जी के बगीचे मे आम ,आडू, अमरूद, जामुन के पेड़ लगे थे।उनसे छन छन कर जो उन पेड़ों की खुशबू अपने मे लपेटे हवा चल रही थी उसके तो कहने ही क्या।आम के पेड़ों पर कोयल कूहक रही थी।आज सुधा जी का जी उस सुहानी शाम मे अपने पति गौतम जी को ढूंढ रहा था।एक तो सुहानी शाम ऊपर से ये मौसम रही कसर आकाशवाणी ने पूरी कर दी जो मौसम के अनुसार विविध भारती पर पुराने क्लासिकल गीत बजा रही थी।सुधा जी का मन ऐसा हो रहा था वो विदेश मे बैठे अपने पति गौतम जी के पास चली जाए।चालीस साल के वैवाहिक जीवन में सुधा जी को कभी भी याद है वो कभी अलग अलग रहे हो। मायके भी दिनों को गिनकर भेजते थे गौतम जी सुधा जी को।पर बेटों ने जीते जी मां बाप का बंटवारा कर दिया था बड़ा लड़का विदेश रहता था। मां बाप को इकठ्ठा नही रखना चाहता था और सुधा जी भी अपनी जन्मभूमि को छोड़कर जाने के लिए राजी नही थी तो यह तय हो गया कि छोटा बेटा मां को रखेगा और बड़ा बेटा पिता को सोई गौतम जी बड़े के साथ विदेश चले गये।दो महीने हो गये थे बेटा बहू दोनों ही नौकरी वाले थे बच्चा अभी कोई था नही तो सुधा जी सारा दिन बोर होती रहती थी।सारा दिन पति को याद करती रहती थी।बेटे बहू से तो हफ्ते मे एक दो दिन ही बात हो पाती थी वीकेंड्स पर वो दोनो बाहर चले जाते थे।सुधा जी को अकेला पन खलता था।गौतम जी घर होते थे तो बच्चों की तरह हर चीज की जिद करते थे।ये बना दो।वो बना दो।पर अब वो चाहते हुए भी नही बना पाती थी।एक तो मन नही करता था दूसरा बहू और बेटा हैल्थ कांशियस थे।
गाने लगातार उस सुहानी शाम के अनुरुप ही बज रहे थे।तभी फोन की घंटी बजी सुधा जी ने मोबाइल उठाया तो देखा गौतम जी का फोन है बस उनकी आंखें छलछला आई।फोन उठाकर बोली,"हां जी ।कैसे हो आप ।मै अच्छी हूं।"
उधर से गौतम जी बोले ,"दिख रहा है कितनी अच्छी हो जब ही तो पल्लू से आंखें पोंछ रही हो।"
सुधा जी एकदम से हैरान रह गयी कि उनको कैसे पता चला कि मै रो रही हूं।सुधा जी चिहुंक कर बोली ,"आप को कैसे पता चला ?"
गौतम जी फोन से ही बोले,"पगली आंखें उठाकर देख मेन गेट पर कौन खड़ा है।"
सुधा जी ने जब मेनगेट की ओर देखा तो गौतम जी बैग कंधे पर टांगें खड़े थे।सुधा जी गौतम जी को देखकर भाग ली ओर जा कर उनसे लिपट गयी सब लोकलाज छोड़ कर।
गौतम जी बस यही कहते रहे अब हम दोनों अलग नही रहे गे। रहेंगे अलग तो बेटों से रहेंगे।
विविध भारती पर गाना बज रहा था
"घर आया मेरा परदेसी, प्यास बुझी मेरी अंखियन कीईईई
अब चलतीं हूं सखी अलविदा।