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सरस्वती वंदना

15 दिसम्बर 2016

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देवी ज्ञानदायिनी विमल कर बुद्धि को तू, हिय में प्रकाश सिद्धता का भरि दीजिए। बुद्धि सन्मार्ग पे लगादे आज अम्ब मेरी, अंतरतिमिर सब दूरि करि दीजिए।। मिले न विचार तुच्छ कर दे सहाय आज, तनमयी दीप ज्ञान तेल भरि दीजिए। मातु "उत्कर्ष"आय विकल पड़ा है द्वार, कविता कारन हेतु सिद्धि वर दीजिए।।

देवेन्द्र उत्कर्ष की अन्य किताबें

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सरस्वती वंदना

15 दिसम्बर 2016
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देवी ज्ञानदायिनी विमल कर बुद्धि को तू,हिय में प्रकाश सिद्धता का भरि दीजिए।बुद्धि सन्मार्ग पे लगादे आज अम्ब मेरी,अंतरतिमिर सब दूरि करि दीजिए।।मिले न विचार तुच्छ कर दे सहाय आज,तनमयी दीप ज्ञान तेल भरि दीजिए।मातु "उत्कर्ष"आय विकल पड़ा है द्वार,कविता कारन हेतु सिद्धि वर दीजिए।।

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गज़ल

16 दिसम्बर 2016
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भूखे पड़े दशकों से मगर आश नही है।बेबस को लिबासों का भी अहसास नही है।।आफत में जान पड़ गई इक बूँद के बगैरकैसे कहूं कि आज मुझे प्यास नही है।।छाई घटा काली थी बहारों से पूंछकरतारों नेकहा, आज तो कुछ ख़ास नही है।।देखा तुम्हे मायूस तो कलियाँ चहक उठीदिल आइने में देख ? क्या उदास नही है।।

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गज़ल

17 दिसम्बर 2016
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भरे अरमानों पे छाई घटा काली -सी है।जिंदगी देखिये दस्तूर निराली-सी है।।मिठास मिल सका न अब तलक हमे साकीदेगा तू जाम कहाँ ;टूटी पियाली -सी है।।टूटे थे ख्वाब मनाया बहुत मातम हमनेदेखिए उनके यहाँ आज दिवाली -सी है।।चढ़ा सियासी रंग रोज मच रहा हल्लादेखो!क्या शहर में चुनाव की लाली -सी है।। -देवे

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मैं मुसाफिर हूँ

22 दिसम्बर 2016
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मैं मुसाफिर हूँ मंज़िल नही जानता ।क्या है आसां क्या मुश्किल नही जानता।।इन निगाहों को समझा वफ़ा ही सदाक्या करेंगी ये घायल नही जानता ।।मरहम-ए-जख़्म है इश्क़ जाना मगरइश्क़ का दर्द-ए-दिल नही जानता।।हमसफ़र हममदद हमजहां में ही थाहम भी होते हैं क़ातिल नही

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