देवी ज्ञानदायिनी विमल कर बुद्धि को तू,
हिय में प्रकाश सिद्धता का भरि दीजिए।
बुद्धि सन्मार्ग पे लगादे आज अम्ब मेरी,
अंतरतिमिर सब दूरि करि दीजिए।।
मिले न विचार तुच्छ कर दे सहाय आज,
तनमयी दीप ज्ञान तेल भरि दीजिए।
मातु "उत्कर्ष"आय विकल पड़ा है द्वार,
कविता कारन हेतु सिद्धि वर दीजिए।।