प्राचीन समय में छात्र गुरुकुल में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। वहां गुरु छात्र को संस्कारित बनाता था लेकिन आधुनिक जीवन में लोगों के पास शायद विकल्प कम रह गए हैं और ये कोचिंग संस्थान इसी का फायदा उठाते हैं। शिक्षा को व्यवसाय बनाकर उसका बाजारीकरण किया जा रहा है। निजी कोचिंग सैंटर हर गली, मोहल्ले और सोसायटी में सभी को झूठे प्रलोभन देकर अपने जाल में फंसा रहे हैं और खुल्लम-खुल्ला शिक्षा के नाम पर सौदेबाजी कर रहे हैं। मजबूर और असहाय अभिभावक विकल्प खोजते-खोजते उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में फंस जाते हैं जिसका निजी संस्थान भरपूर लाभ उठा रहे हैं।
कई तो ऐसे पूंजीपति लोग देखने में आते हैं जिनका शिक्षा से कोसों तक कोई नाता नहीं होता लेकिन उन्होंने अपने धन और ऐश्वर्य के बल पर इन विद्या मंदिरों को सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने का साधन बना डाला है। आज यह शिक्षा का व्यापारीकरण नहीं तो और क्या है? कई बार तो जहन में यह भी सवाल उठता है कि आखिरकार इसका उत्तरदायी कौन है? हम स्वयं, सरकार या हमारी शिक्षण पद्धति। इस बात का उत्तर शायद किसी के पास नहीं है।
शिक्षा के बाजारीकरण का अर्थ है शिक्षा को बाजार में बेचने-खरीदने की वस्तु में बदल देना अर्थात शिक्षा आज समाज में मात्र एक वस्तु बन कर रह गई है और स्कूलों को मुनाफे की दृष्टि से चलाने वाले दुकानदार बन चुके हैं तथा इस प्रकार की दुकानें ही छात्रों के भविष्य को बर्बाद कर रही हैं। अभिभावक भी शिक्षा की इन दुकानों की चकाचौंध को देख कर उनमें फंसते जा रहे हैं परन्तु अंत में जब तक अभिभावकों को इन दुकानों की वास्तविकता का पता चलता है तब तक वे अपना धन और समय गंवा चुके होते हैं।
इन सभी कारकों के परिणामस्वरूप शिक्षा का स्तर भी निम्र होता जा रहा है। स्कूलों में बच्चों की गुणवत्ता की अपेक्षा बच्चों की संख्या पर विशेष ध्यान दिया जाता है जोकि सर्वथा अनुचित है। नए शैक्षिक सत्र के आरंभ में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर स्कूल प्रशासक अभिभावकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं लेकिन कुछ समय के पश्चात जब वास्तविकता सामने आती है तो वे मजबूरन कुछ नहीं कर सकते और अपने बच्चों के लिए स्कूल प्रशासन की उचित-अनुचित मांगों को पूरा करने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
कई बार देखने में आया है कि प्रतिस्पर्धा या ईष्र्या के कारण भी निजी स्कूल अपनी गुणवत्ता का प्रदर्शन करते हैं और इसके लिए सभी उचित-अनुचित तरीकों को अपनाते हैं जोकि सर्वथा अनुचित है। ये संस्थाएं शिक्षा की गुणवत्ता को नजरअंदाज कर देती हैं। इनका मुख्य उद्देश्य होता है धन अर्जन करना, चाहे वह कमाई पुस्तकों के माध्यम से हो या यूनीफार्म के द्वारा हो, यहां तक कि ये अध्यापकों का शोषण करने से भी नहीं चूकते।