शिक्षा का बाजारीकरण शिक्षा आज के आधुनिक युग में 'ज्ञान मात्र' ना रहकर, बाजार में बिकने वाली एक 'वस्तु मात्र' बनकर रह गई है। जिस प्रकार जब माता-पिता बाजार जाते हैं और बच्चे अलग-अलग खिलौने देखकर किसी मह
" 😭😭 अभिभावकों कि दुर्दशा 😭😭🙏🙏🙏🙏🌷✍️🌷🙏🙏🙏🙏क्या हो नहीं सकता....सरकारी विद्यालयों में सुधार ?विवश लाचार नन्ही आत्माओं की ,ना जाने कब कैसे होंगी उनकी उद्धार ।तीन चार टिविसन हुआ ज़रुरी ,अस्मर
वैसे तो सभी बुधिजीवी नारा लगाते रहते है की शिक्षा सभी को मिलनी चाहिये शिक्षा में सभी का अधिकार है पर अगर देखा जावे तो कहने और करने में बहुत अन्तर है आज जहां सब कुछ बिजनस बन चुका है अगर उसको मद्देनजर र
जीवन का अनमोल वरदान है शिक्षा ग्रहण करना जिसका महत्व उन लोगों को पता होता है जो अपनी आर्थिक स्थिति या किसी कारण अशिक्षित रह जाते हैं..., क्योंकि शिक्षित व्यक्ति समाज का दर्पण है लेकिन आधुनिक जीवनशैल
कभी स्कूल में संस्कृत की पुस्तक में विद्या रुपी धन के महत्ता के बारे गुरूजी एक श्लोक का खूब रट्टवाते थे कि- "न चौर्यहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि। व्यये कृते वर्धते एव
प्रिय सखी।कैसी हो।हम अच्छे है ।और सुनाओ तबीयत पानी सब बराबर है ना।मौसम तो अब ज्यादा ही ठंडा हो गया है ।आज का विषय:- शिक्षा का बाजारीकरणप्राचीन समय में छात्र गुरुकुल में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। वहां
मनमानी का खेल चल रहा,शिक्षा अब व्यापार बनी।जनता की गाढ़ी कमाई,शिक्षा के लिए अब लूट बनी।।सरकारी स्कूलों में ,शिक्षा का बेहाल हुआ।कर्तव्य से विमुख हुआ मानव, कर्तव्य का दुरूपयोग हुआ।।निजी शिक्षालय लूट रह
दुनिया के हर देश में गरीबी उपलब्ध है लेकिन ग़रीबी इस दुनिया से कम होने का नाम नहीं ले रही है। हालांकि लोगों की हालत में सुधार लाने के लिए कई प्रयास भी किए जा रहे हैं।लेकिन जिस प्रकार के प्रयास स