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शब्द

15 दिसम्बर 2017

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मैं अक्षरों को बटोरने में लगा हूं- कुछ शब्द, बने हुए मिल जाएंगे, कुछ, मैं बना लूंगा. उन्हें कहीं भी उकेड़ूंगा- कुछ कहने लगेंगे, और, उन्हें पढ़नेवाले कुछ समझने लगेंगे. मगर, यह जरूरी तो नहीं- मेरे संयोजनों की संवेदनाएं हूबहू परिभाषित हों. बेहतर है- मैं शब्दों के निर्बाध विचरण का ही आनंद लूं. वैसे भी, मझे उनके सामर्थ्य पर पूरा यकीन है- आज नहीं तो कल, वे झंकृत कर देंगी, अचकचा देंगी, उन सबों को जिन्होंने उन्हें नहीं सुनने की कसम खा ली है. पंकज

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बहुत खूब लिखा है , पंकज जी .

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मैं अक्षरों कोबटोरने में लगा हूं-कुछ शब्द,बने हुए मिल जाएंगे,कुछ, मैं बना लूंगा.उन्हें कहीं भी उकेड़ूंगा-कुछ कहने लगेंगे,और,उन्हें पढ़नेवालेकुछ समझने लगेंगे.मगर,यह जरूरी तो नहीं-मेरे संयोजनों की संवेदनाएंहूबहू परिभाषित हों.बेहतर है-मैं शब्दों के निर्बाधविचरण का हीआनंद लूं.वैसे भी,मझे उनके सामर्थ्य परप

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नया नया

30 दिसम्बर 2017
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नई सुबह है, नया धुंध है,सब कुछ नया नया है.महक नई है, चहक नई है,बगिया नई नई है.नई चेतना, नई वेदना,कलरव नया नया है.कूक नई है, हूक नई है,करुणा, दया नई है.शाम नई है, रात नई है,तारों की बारात नई है.नया चांद है, नई चांदनी,जुगनू नया नया है.नया भाव है

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