मुसाफिरों की इस नगरी में जिंदगी के मेले हैं,
आते हैं सब अलग अलग जाते भी अकेले हैं.
सबका मदारी एक है,इशारों पर वो नचाता है,
जिसने कहा न माना, उल्टे सीधे दाव खेले हैं.
मंजिल सबकी वो है,राह सब अपनी चुनते हैं,
कोई खुश यहाँ पर,किसी को लगते झमेले हैं.
नजरिया हमारा हमें हमारी दशा समझाता है,
दिल से नही करते जो काम, दुःख ही झेले हैं.
हर कोई अपने अपने अहम में है, वहम में है,
हे प्रभु माफ कर देना,हम तेरे ही प्रिय चेले हैं.