फिर उठी है कसक तुम से रूबरू होना चाहती है ,
बेशुमार चाहत और दिल में हूबहू कोना चाहती है .
इधर उधर सब छोड़ कर ,रिश्ते नाते सब तोड़ कर ,
वक्त बेवक्त की हर दौलत तुम पर खोना चाहती है .
आंखें पत्थर ना हो जाए , कहीं और ना खो जाए
अब ये तुम्हारे पहलू में पल दो पल रोना चाहती है .
यादों ने बगावत कर दी है ,शिकायतों से भर दी है ,
मन की हर आहट सिर्फ तुम्हारा ही होना चाहती है .
थोड़ी सी थकान का एहसास हो रहा है इन्तजार में ,
दीदार होते ही ,एक करवट बेखबर सोना चाहती है .