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उपसंहार के साथ

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मन की लहरों को नहीं लिख पाई जो लिख पाई वो किनारे के पानी थे या भीगी रेत के एहसास … ! वो जो मन गर्जना करता है उद्वेग के साथ किनारे पर आकर कुछ कहना चाहता है वह मध्य में ही विलीन हो जाता है .... यूँ कई बार रात के तीसरे पहर में कितनी बार उठकर बैठी हूँ लिख

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