1.ये इश्क़ नहीं हैं तो फिर क्या हैं! बिन कहें आँखें सब कुछ बया कर जाती बिन कहें दिल की बात उस तक पहुँच जाती ये इश्क़ नहीं हैं, तो फिर क्या हैं। जब बातें दिल से ज्वाला की तरह निकालती और जुबान से अधरों के ताल-मेल को बिगाड़ देती कहना कुछ चाहए और बोल कुछ और जाते लोग बस मुर्ख समझ दूर हो जाते कुछ सांत्वना दे समझा जाते, तो कुछ समय गुजारा वस्तु समझ उपयोग में लाते दुनियाँ ऐसे नहीं चलती कुछ ये पाठ सीखा जाते फिर भी हम इन सब का एहसान मानते कुछ बाते चोट तो करती, लकिन तुम्हारें ख्याल से सब भूल जाते दिल की तारो में मधुर स्वर आ जाते फिर उसी पागलपन में लौट जाते ये इश्क़ नहीं हैं तो फिर क्या हैं। 2. कब के जा चुके हैं! सुनसान रात को जगाने वाले, भरी बरसातों को महसूस कराने वाले, भरी रातों को साथ तारे गिनाने वाले, आषाढ़ की धूप को छाँव बनाने वाले, कब के जा चुके हैं। आलिंगन से हर दर्द को कम करने वाले भावनाओं के सागर में गोता लगाने वाले कुछ कमी त्रुटियों को स्वैच्छिक स्वीकार करने वाले बिना कहे बातों को समझाने वाले कब के जा चुके हैं। बिखरे हुए को इकट्ठा करने वाले, हर उधेड भुन को सुलझाने वाले, साथ चल कर अन्तिम तक चलने वाले, पीछे छूटने पर हाथ थामने वाले, कब के जा चुके हैं। ऊँच नीच का भेद न करने वाले, बिना मतलब के रिश्ता जोड़ने वाले, एक को ही अपनाने वाले, हर जगह मूँह न मारने वाले, कब के जा चुके हैं। 3. तुम अब भी मुझको दर्द देना चाहो! तुम्हारे दिए दर्द को मैं इनाम समझ लूँगा। किसी मय की जरूरत नहीं सहने को इसको इसको ही अमृत मानकर ग्रहण कर लूँगा। तुम न समझना मुझे भी आसमान से सितारें तोड़ लाने वाला वो जुमले बाज तुम को सच बोल कर ही प्राप्त करने की कोशिश करूंगा। माना जाल बिछा कर बहुत-सी मछलियाँ पकड़ी जाती रही कईयों को उपयोग में लाकर भोग कर राह में छोड़ दी जाती रही तुम न समझना मुझे तुम को भी इस चालबाज जाल का साथ लेकर तुम को बीच राह में छोड़ दूँगा तुम को तो अपनी आत्मा मान कदम कदम पर साथ दूँगा। तुम अब भी मुझको दर्द देना चाहो तो उसको खुशी खुशी ग्रहण कर लूँगा। अगर तुम मुझे छोड़ जाओ कभी तुम को अपनी यादों से कैसे छोड़ दूँगा हर समय रहती तुम मेरे साथ तुम्हें कुछ देर हो जाने पर भी तुम को कैसे छोड़ दूँगा। तुम अब मुझको दर्द देना चाहो तो उसको मैं खुशी खुशी ग्रहण कर लूँगा। 4. क्या लिखू या क्या ना लिखू तुम पर मेरी शब्दकोश की भंडार हो क्या लिखू या क्या ना लिखू तुम पर तुम तो मेरी शब्दकोश की भंडार हो हर शब्द नहीं निकालता दिमाग से तुम्हारे बारे में तुम तो इस मन से निकले शब्द और मेरी हर कविताओं का आधार हो तुम्हारी किस सुंदरता पर अधिक लिखू या फिर तुम्हारी किस अदा के बारे में सोचूँ या लिखू , कैसे तुम्हारा बिखरी जुल्फों को सँवारना उस पर एक मुस्कान से चहरे पर चार चाँद लगाना अधरों की रस से भरी उस लालिमा पर या लिखू, उन शब्दों को जो तुम्हारे होंठों जीभ की कसरत से मधुर बना कर निकले हो जो मेरे को कानो को तुम्हारे दीवाने को बार बार सुनते हो। लिखता हूँ कुछ भी तो लगता जैसे तुम मेरे सामने बैठी हो क्या लिखू या क्या ना लिखू तुम पर तुम तो मेरी शब्दकोश की भंडार हो। लूट चुका था कॉलेज समय से ही अब तक तुम ही एकमात्र चाह हो न महसूस हुआ वो पागलपन न वो फिर से तुम्हें खो जाने की बेचैनी कुछ किसी दूसरो से तुम ही उठती गिरती साँसों जुबा में अटकते हर शब्दों तुम्हारी हर तरफ मौजूदगी का प्रमाण हो क्या लिखू या क्या ना लिखू तुम पर तुम तो मेरी शब्दकोश की भंडार हो। साहित्य की कितनी ही असंख्ये पुस्तकों को पढ़ गेरो हर पुस्तक का एक मात्र सार तुम हो अब तुम इस लेखक को खुशी दो या ग़म ए शाम दो पर तुम हमेशा मेरी कलम का मेरे मन का मेरे मस्तक का मेरे समस्त शरीर का स्वाभिमान हो। क्या लिखू या क्या ना लिखू तुम पर तुम तो मेरी शब्दकोश की भंडार हो। 5. कुछ पता नहीं चलता! अन्दर इतनी चुप्पी हैं, कि बाहर कितना शोरगुल हैं कुछ पता नहीं चलता। मना रहा हैं जब सारा शहर उत्सव अन्दर बैठे दर्द को शोक किस का वो तो चल दी यू कह कर हम दोस्त बन कर रहेगे पर इस भीड़ में कौन दोस्त दोस्ती करने वालो का कुछ पता नहीं चलता। लिखता था, जिसको सामने रख के कलम बहाता था, जिसको याद करके उन काग़ज़ों के टुकड़ों का दर्द से भरे उन आसुओं का कुछ पता नहीं चलता। मैं तो चल रहा था एक उम्मीद से प्रेम राहों पर कभी न कभी तो तुम समझोगी एक बार फिर सत्य की जीत होगी आत्मीय प्रेम करने वालो में प्रेम की उम्मीद तो जागेंगी पर कहाँ उम्मीदों को तोड़ने वालो का बेवफ़ाई करने वालो का कुछ पता नहीं चलता। 6. चल रहा हूँ मैं एक सबक लेकर।। चल रहा हूँ मैं एक सबक लेकर हारा मैं भी नहीं तुम खुश हो किस जीत को लेकर। चल रहा हूँ मैं एक सबक लेकर। मजिल क्या हैं, कितनी दूर हैं, क्यों चिंतित हैं, उस को लेकर। कौन तुम्हारे साथ है अब कौन बेकार के हाथ हैं देख ले, सोच ले विचार कर ले उन बदलते चहरों को लेकर । चल रहा हूँ मैं एक सबक लेकर आज हैं करुणा प्यार जिन को लेकर विरह की तड़प की आग आज हैं, उन को लेकर क्या वो बेचैनी तुम को खोने की परेशानी रातों को सो कर जागने की निशानी तुम पास होने पर भी तुम्हारे पास महसूस होने की दीवानी तुम को तो महसूस हैं ये सब उन को लेकर क्या वो भी महसूस करते हैं, तुम को लेकर। चल रहा हूँ मैं एक सबक लेकर। मानता है, हर कोई अपनी परशनियों को दूसरों के दुःख से बढ़कर सब छल रहे हैं एक दूसरे को चहरों के मुखौटे बदल बदल कर बस तू चल कर सत्य की तलाश अपने साथ रख सत्य हाथों को थामना चाहए ओर कोई भी इन हाथों और राहों को चल पड़ उन को भी साथ लेकर चल रहा हूँ मैं एक सबक लेकर। 7. मैं तुम को चाहता हूँ! इस सन्नाटों भरी गहरी रात को सोना कौन नहीं चाहता हैं। सब चाहते हैं, मैं चाहता हूँ, पर मैं तुम को भी तो चाहता हूँ। हो मेरी बहाओ में सर तुम्हारा और अपने प्रेम की जकड़न से तुमने मुझे जकड़ा हो मेरे कर, केश तुम्हारे संवारते हो तुम्हारी बंद आँखों को बंधे अधरों को चहरे की चाँदनी को अपनी छोटी दोनों आँखों से इस मोहनी उर्वशी रूप को समेटना निहारना चाहता हूँ। मैं सोना नहीं, मैं तुम्हें सोते देखना चाहता हूँ। हैं, नहीं ये इत्तेफाक एक छोटी सी हुई बात का इस मुक़ाम तक पहुँच जाना तुम्हारी हर बातों का कतरा-कतरा मीठे जहर-सा शरीर के हर कोने में फैल जाना तुम्हारी मौजूदगी में इस का तड़प जाना बोलना कुछ बोल कुछ और बोल जाना तुम्हारी गैरमौजूदगी में इस का दवा बन आराम दिलाना मैं भी चाहता हूँ। तुम करो विश्वास मुझ पर खुद पर मैं भी खुद को तुम्हारे अंदर हर कोने में खुद को मौजूद पाना चाहता हूँ। तुम्हारे लगाए गए डर की अविश्वास की सीमाओं को टुटे देखना चाहता हूँ। बस तुम्हारा साथ चाहता हूँ, क्योंकि मैं तुम को चाहता हूँ। दिखते हैं हर तरफ हर दिन नए रिश्ते बनते और टूटते ना मैं खुद से और ना तुम से ये उम्मीद चाहता हूँ। हो अलग इस कायनात से दुनियाँ की नजर में हम पागल और तुम मुझको और मैं तुम को इस पागलपन का इलाज मानूँगा। रहूँ हर समय मैं तुम्हारी हर सफलता का कारण तुम भी रहो हर मेरी सफलता का कारण इस दुनियाँ को प्रेम का दिवानगी का एक रूप दिखाना चाहता हूँ। तुमको मैं अलग नहीं तुम को मैं मानता हूँ, क्योंकि मैं तुम को चाहता हूँ। इस सन्नाटों भरी गहरी रात को सोना कौन नहीं चाहता हैं। सब चाहते हैं, मैं चाहता हूँ, पर मैं तुम को भी तो चाहता हूँ। 8. मैं कौन हूँ! मैं, मैं हूँ मैं, अहंकार नहीं मैं स्वाभिमान हूँ मैं, कुछ नहीं पर मैं अपनों का सब कुछ हूँ। मैं पूरी धरा का आधिपत्य पर मैं अपनी कर्म भूमि मातृभूमि का रक्षक हूँ। जो अपना मानते हैं उनके लिए मैं तुम हूँ तुम मैं हूँ । मैं ईश्वर नहीं मैं ईश्वर का एक महीन कण हूँ मैं इस सृष्टि का जनक नहीं मैं इसको चलने के लिए एक वस्तु हूँ मैं तुम-सा छल, चालक, धूर्त नहीं मैं मुर्ख हूँ। मैं तप, योगी नहीं मैं तपस्वी हूँ मैं संपूर्ण ज्ञान नहीं पर मैं अज्ञानी नहीं हूँ। मैं, मैं हूँ। 9. अब तो चाँदनी रात में आसमान को देखने का मन नहीं करता! अब तो चाँदनी रात में आसमान को देखने का मन नहीं करता अब तो निगाहें अमावस को ही ऊपर की ओर जाती हैं। अब तो किसी को अपना कहने को मन नहीं करता अब तो तुम्हारी बेवफ़ाई की धोखेबाजी की यादे ही चलने को काफी हैं। लूटने को तुम्हें किसी हत्यारों की जरूरत नहीं तुम्हारी मासूम अदाएं तुम्हारी नज़रे ही काफी हैं। अब तो खोने को मेरे पास कुछ नहीं तुम्हारी झूठी मोहब्बत की डकैती ही काफी हैं। अब तो चाँदनी रात में आसमान को देखने का मन नहीं करता अब तो निगाहें अमावस को ही ऊपर की ओर जाती हैं। बहुत गहरी हो चुकी हैं, अब तक तुम्हारी मोहब्बत में इस दीवानेपन की खाई इसे भरने के लिए इसे समझने के लिए इसे महसूस करने के लिए और कोई काफी नहीं हैं। चल तो रही हैं, अब तक इस दिल की धड़कन उथल-पुथल सी साँसों में भी आवेग सा इस शरीर में जान में जान काफी नहीं हैं। अब तो चाँदनी रात में आसमान को देखने का मन नहीं करता अब तो निगाहें अमावस को ही ऊपर की ओर जाती हैं। हंसने को नहीं अब मन रोने को आँखों का पानी भी काफी नहीं इस दर्द को कम करने के लिए किसी मय साक़ी की नहीं तुम्हारी एक झलक ही काफी हैं। ना जाने क्यों कर बैठा इस तरह का नशा इसे छोड़ने में सजा और ना छोड़ने में जीने ना कोई मजा इस से छूटने की ना कोई दवा और मरने को ना कोई ज़हर काफी हैं। अब तो चाँदनी रात में आसमान को देखने का मन नहीं करता अब तो निगाहें अमावस को ही ऊपर की ओर जाती हैं। 10. सोने वाले तो सो गए हैं! सोने वाले तो सो गए हैं, कितनों की नींदे भगाकर उनको को तो ये भी पता नहीं इश्क़ में नींदे कहा रहती हैं। रातें कटती हैं, जाग कर लगता हैं आसमान में सितारों की कमी हैं है, मदहोशी चाँदनी रात में बस एक तुम्हारी ही कमी हैं। हर रात तुम्हारी खूबसूरती की बात चलती हैं। चाँद की चाँदनी भी कम सी लगती हैं। सितारों के गरूर को भी तुमने तोड़ हैं। जब तुम्हारी मुस्कान की बात चलती हैं। आसमान भी सितारों से झड़ जाए जब तुम्हारे बनने संवारने की बात चलती हैं। ना जाने कितने सितारे पीछे पड़ जाए जब तुम्हारी बल खाती कमर की बात चलती हैं। कितने तो बिना देखने ही मर जाए जब कातिल सी नजरों की बात चलती हैं। हर तरफ ये हवाएँ मदहोश हो जाए रागिनी पास आकर बैठ जाए जब ये कलम दिल से तुम्हारे बारे में लिखती हैं। तुम सो गए आराम से जाकर यहाँ करवटें अभी भी बदलती हैं। सोने वाले तो सो गए हैं, कितनों की नींदे भगाकर उनको को तो ये भी पता नहीं इश्क़ में नींदे कहा रहती हैं। लग रहा हैं ये इश्क़ अब रेत सा टीला तुम्हारी मोहब्बत की कमी चल रही हैं। हैं, सूरज बीच क्षितिज पर खड़ा यहाँ अभी रात चल रही कोई जाओ उन को समझा कर ले आओ इस दीवाने की धड़कने मुश्किल से चल रही हैं। किसी और चहरे बार बार ना दिखाओ तुम्हारे मोहब्बत के चहरे के लिय ये आँखें ये रातें जगती हैं। हैं, बहुत सी कमी मेरे में हरजाई इसे भी साथ मिलकर पूरा करने की बात चल रही हैं। सोने वाले तो सो गए हैं, कितनों की नींदे भगाकर उनको को तो ये भी पता नहीं इश्क़ में नींदे कहा रहती हैं।