24 अप्रैल 2024
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सपनें जो मुझे सोने नहीं देते!!D
"कन्फ्यूजन में सब अच्छा लगता हैदिल, दिमाग़ सब बच्चा लगता हैदेखता हूं उसको तो बस अच्छा हैनए शौक़,पुराने दिल में रखने वालाआशिकी मैं उसका पहला पन्ना पन्ना सब कोरा कागज़ लगता हैकन्फ्यूजन में सब अच्छा
तेरी याद मेंज़िंदगी रोज़ जीते रहे तेरी यादों में मरने के लिएख्वाहिशें बर्बाद लिएइक दिन तुझसे मिलने के लिएसोचा न थाकुछ यूं गुजरेंगेज़िंदा तेरी यादों मेंतिल तिल कर मरेंगेकौन खुशनसीब हैजिनके नसीब मे
प्रेम उपवनमेरी धड़कनों की संवेगों कोक्यों बेइंतिहा बढ़ाते होदेखा तुम्हें आज़ भी,अपनी राहों मेंतुम किसी बुत से खड़े रहते होऔर मैं मंद पवन बन गुजर जाती हूं!कुछ नया नहींकोई अद्भुत अनुभव नहींतुम मुश्किलों
ज़िंदगी प्यास है तोपानी की आस हो तुममन की दहलीज परपुष्पों की सेज़ हो तुमदिल गर देवता हैं तोमन की काशी सी तुमगीत जो सुरीले निकलेवो वीणा की मधुर तान सी तुमनैनों में जो ख़्वाब चमकेवो मधुर सपनों की संसार
बादल बदल गए फिरबादल बदल गए फिर.....सावन की बौछारों पर अब क्या लिखूं,घटाएं गरजी और बरस ना पाईआंखों में जो रुक गए पानीउनकी क्या विसात लिखूं!बादल बदल गए फिर....सावन के गीतों में क्या लिखूं,जीवन में फ़ैला
तेरी याद में गालिब होने चला,लिखके तुझे मैं मशहूर होने चला,वफाओं के क़िस्से न याद ज्यादा दिला,पीके कुछ ख्वाईशें आज़ फिर कम करने चला...तेरी यादों से बिछड़ मैं...तुझसे ही फिर मिलने चला!!प्राची सिंह "मुंग
कुछ दर्द मरहम भी होता हैदर्द में भी आराम पहुंचाते हैंदेखो गुलाब कोकैसे काटों के बीच रहकरहमेशा मुस्कुराते हैं।।प्राची सिंह "मुंगेरी"
"दिल की काशी में घिरी बहुत उदासी हैखोए रहे जो मन के नगर मेंक्यों ढूंढ़ रहा दिल उसे नगर नगररहनुमा बन जो दिल में रहता थाक्यों ढूंढें अब मन उसे इधर उधर।"प्राची सिंह "मुंगेरी"
वफाएं अक्सर....हाथ में रची मेंहदी के रंग में भीमेहबूब की चाहत देखते हैंये देखने वाले भीजाने क्या क्या देखते हैं!कौन है ये,क्यों है!क्यों ज़ख्मों पे नमक छिड़कदर्दों को ज़िंदा रखने का काम करते हैं!छोड़
रिश्ता तो खुदा बनाते हैंरिश्ता तो खुदा बनाते हैं जिस्म से अलग हो तुममेरी जां कहलाते हो,हाथों में खिंची लकीरेंमेरा नसीब कहलाते हो,समझा गई ये तन्हाईतुमसे दूर न रह सकूं मैंकिसे बताऊं कि...तुम्हारे ब
मेरी ग़ज़लतुम मेरी ग़ज़ल हो...तुम मेरी धड़कन हो.....इक बार संवार भी लूं ख़ुद को लेकिन बिखरना मेरा मुकद्दर थातुम आए और चले गएछोड़ गए यादों के लम्हें अनगिनतसुना है प्रेमी बिछड़ते नहीं कभीआ मिलते हैं लेक
किस गैर से जा मिलीनींद मेरी आंखों की,सुबह का इल्म नहींस्वप्न लूट गए खैरातों में,जज्बातों को बहुत संभाला और भींग गए तकिए सिरहाने में,प्यार, मुहब्बत, इश्क़ युक्तियां लगतीमन लूट ले गए,शहर से बाहरदूर
हम किसी के भी हो न पायें खिला के फ़ूल उल्फतों कारस्मों के चिराग़ जला ना पाएंतुम हो लिए किसी गैर केहम आज़ भी किसी के हो ना पाएं!हमने जो पी कभी उन आंखों सेअब वो जाम कहां मिलता है!सजाई हुई दुकानों म
प्रिय प्रेम (शर्माजी) मधुर प्रेम स्मरण!बीती बहुत बात बीत रही सीने में!स्मृतियों के बहाने ही आ जाते इक बार किकई कई बार सीने में जा लगी विरह
"किनारे भी कातिल हो जाते हैंलिखने वाले जब तकदीर बुरी लिखते हैंआंसूओं को कब तलक़ संभालोगें ऐ टूटे जिगरमरहूम बनकर जाने वाले किन्हीं कांधों का सहारा कब देखते है!!प्राची सिंह "मुंगेरी"
"जिन गलियों में ख़ाक ऐ मुहब्बत ढूंढ़ रहे तुमउन गलियों में अब गुजरना छोड़ दिया मैंनेसपने बुने थे मिलकर ज़िंदगी के सफ़र मेंतुम किसी और के साथ आगे बढ़ गएतन्हा रह गए मुकद्दर के रकीब हमसोचकर तुम्हें अब मुस
जो मैं पानी बन जाऊं....गले से नीचे उतरूं तो प्यास बुझा दूं मैं!आग में गिरूं तोजलते को राख बना दूं मैं!पौधों में मिल जाऊं तोनवजीवन का प्राण डाल दूं मैं!जो मैं पानी बन जाऊं.....बादलों से मिलूं औरबू
दिल जो चाहता हैवो साल कहां, कब और कैसे आता है!आंखें बड़ी बतियाती है सावनआंखों में ठहर जाएवो बरसात कब और कैसे आती है!दिल खा रहा तेरी यादों की लहरों से ठोकरेंबता दे कोई किइन सैलावों में इम्तिनान कब और क
"आ मिलेंगे कभी नैनों के घाट परमन का दीप जलाए रखना सुलभ , सरल, शुभ इंतज़ार करनाख़ामोशी की ज़ुबां से प्रेम की सारी रस्में पूरी करना।"प्राची सिंह "मुंगेरी"