बादल बदल गए फिर
बादल बदल गए फिर.....
सावन की बौछारों पर अब क्या लिखूं,
घटाएं गरजी और बरस ना पाई
आंखों में जो रुक गए पानी
उनकी क्या विसात लिखूं!
बादल बदल गए फिर....
सावन के गीतों में क्या लिखूं,
जीवन में फ़ैला मलमास
ये घटाएं,ये फिजाएं
इन शामों में, ये सिंदूरी क्षितिज...
बिना तेरे,बेहाल ये मन
अंधेरी रातों में मौन सिसकियां....
जीवन गीतों में क्या राख लिखूं!
बादल बदल गए फिर....
विरह में कैसा!
प्रेम का गुणगान लिखूं,
अभी हुई थी प्रेम की नवदीवाली...
ढोलों की थापों पे कैसे...
मौन के गीत गुमनाम करूं!
बादल बदल गए फिर....
पगला सा दिल....
प्रियतम,मिलने की कब तक आस करूं
मुरझायें पुष्पों से मिला भंवर....
उदास गीतों में...कैसे!
प्रेम का पूर्णरूपेण सविस्तार लिखूं!
बादल बदल गए फिर....
जीवन के नवतरंगों में,
बदले हुए जीवन का क्या वृतांत लिखूं!
बहुत समझाया तुझे ऐ मन आसमां
धरती पे रहने का कुछ तो...
नुकसान सहो
क्या लाए थे साथ
जो खो गया!
जो होके अपना फिर पराया हो गया!
बादल बदल गए फिर.....
भींगे - भींगे मन का क्या सूखा हाल लिखूं!
प्राची सिंह "मुंगेरी"