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आध्यात्मिक

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सात परिक्रमाएं पूर्ण कर लेने के बाद सप्तपदी की रस्म अदा की जाती है। इसके लिए वर-वधू साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर पहले से बना दी गई चावल की सात ढेरियों पर पैर लगाते हुए एक-एक कदम आगे बढ़ते हैं। रुकते हैं,

जब-जब श्रीकृष्ण का नाम लिया गया है, ऐसा कभी हुआ नहीं कि राधा जी का नाम ना लिया गया हो। श्रीकृष्ण को अमूमन भक्त राधे-कृष्ण कहकर ही पुकारते हैं। क्योंकि यह दो शब्द, यह दो नाम एक-दूसरे के लिए ही बने हैं

पार्वती, उमा या गौरी मातृत्व, शक्ति, प्रेम, सौंदर्य, सद्भाव, विवाह, संतान की देवी हैं। देवी पार्वती कई अन्य नामों से जानी जाती है, वह सर्वोच्च हिंदू देवी परमेश्वरी आदि पराशक्ति (शिवशक्ति) की पूर्ण साक

सप्तपुरी पुराणों में वर्णित सात मोक्षदायिका पुरियों को कहा गया है। इन पुरियों में 'काशी', 'कांची' (कांचीपुरम), 'माया' (हरिद्वार), 'अयोध्या', 'द्वारका', 'मथुरा' और 'अवंतिका' (उज्जयिनी) की गणना की गई है

प्राचीनकाल में देवताओं और राक्षसों के कई युद्ध हुए. इन युद्धों में कभी देवता जीतते और कभी राक्षस. लेकिन एक समय ऐसा आया कि राक्षसों की शक्ति तेजी से बढ़ने लगी. इसका कारण था मृतसंजीवनी विद्या. राक्षसों क

महाकवि तुलसीदास जी ने हनुमानजी को बताया ---अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।अस वर दीन्ह जानकी माता ।।हनुमानजी को जिन आठ सिद्धियों का स्वामी तथा दाता बताया गया है वे सिद्धियां इस प्रकार हैं-1.अणिमा: इस सि

​एक कुलीन ब्राह्मण को अपनी कुल परम्परा का सम्पूर्ण परिचय निम्न 11 (एकादश) बिन्दुओं के माध्यम से ज्ञात होना चाहिए -1. गोत्र।2. प्रवर।3. वेद।4. उपवेद।5.शाखा।6 .सूत्र।7 .छन्द।8 .शिखा।9 .पाद।10 .देवता।11

आपके द्वारा संपन्न किसी भी कार्य का मुल्यांकन लोगों द्वारा दो तरह से होता है। एक लोग जो उससे कुछ सीखते हैं और दूसरे जो उसमें कुछ गलती निकालते हैं। इस दुनिया में सदा सबको एक साथ संतुष्ट करना कभी किसी क

नारद मुनि ब्रह्माण्ड के प्रथम संवाद दाता। नारद, देवताओं के ऋषि हैं। इसी कारण नारद जी को देवर्षि नाम से भी पुकारा जाता हैं। इनका जन्‍म ब्रह्माजी की गोद से हुआ था।    पुराणों के अनुस

 जीवन तब जटिल बन जाता है जब हम सीखना बंद कर देते हैं। यह संपूर्ण प्रकृति एक सीख और सिखावन से प्रदान करती है ताकि हम उससे कुछ सीख कर अपने जीवन को और सरल, खुशहाल व आनंदमय बना सकें।चींटी से मेहनत बग

प्राणी की मृत्यु या अंत को लाने वाले देवता यम हैं। यमलोक के स्वामी होने के कारण ये यमराज कहलाए। चूंकि मृत्यु से सब डरते हैं, इसलिए यमराज से भी सब डरने लगे जीवित प्राणी का जब अपना काम पूरा हो जाता है,

“महाभारत” एक ऐसा महाग्रंथ है जिसमे निहित ज्ञान आज भी प्रासंगिक है| इसमें बताये गए युद्ध के 18 दिनों में तरह तरह की रणनीतिया और व्यूह रचे गए थे | जैसे अर्धचंद्र, वज्र, और सबसे अधिक प्रसिद्ध चक्रव्यूह |

उगते हुए सूर्य को जल देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है | बहुत से लोग आज भी इसका पालन करते हैं इसके पीछे धार्मिक मान्यता हीं नहीं बल्कि वैज्ञानिक आधार भी है | धार्मिक दृष्टि से बात करें तो बिना सूर

आप सभी ने कभी ना रावण का ऐसा चित्र अवश्य देखा होगा जिसमें एक व्यक्ति उनके पैरों के नीचे दबे हुए रहते है। रावण उन्हें अपनी चरण पादुका की भांति उपयोग लाता है। क्या आपको पता है कि वो व्यक्ति कौन है? आपको

वैशाख मास की पूर्णिमा पर कूर्म जयंती का पर्व मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लिया था तथा समुद्र मंथन में सहायता की थी। कूर्मावतार भगवान के प्रसिद्ध

महर्षि वेदव्यास के अनुसार मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक पवित्र सोलह संस्कार संपन्न किए जाते हैं । वैदिक कर्मकाण्ड के अनुसार निम्न सोलह संस्कार होते हैं:1.गर्भाधान संस्कारउत्तम सन्तान की प्राप्ति के

पौरिणीक कथाएक बार देवी पार्वती हिमालय भ्रमण कर रही थी उनके साथ उनकी दो सहचरियां जया और विजया भी थीं, हिमालय पर भ्रमण करते हुये वे हिमालय से दूर आ निकली, मार्ग में सुनदर मन्दाकिनी नदी कल कल करती हुई बह

पर्व और त्योहार देश की सभ्यता और संस्कृति के दर्पण कहे जाते हैं। वे हमारी संस्कृति की इन्द्रधनुषी आभा में एकरूपता, राष्ट्रीय एकता, अखंडता के प्रतीक होने के साथ-साथ जीवन के श्रृंगार उमंग और उत्साह के प

पंचकोशी काशी का अविमुक्त क्षेत्र ज्योतिर्लिंग स्वरूप स्वयं भगवान विश्वनाथ हैं । ब्रह्माजी ने भगवान की आज्ञा से ब्रह्माण्ड की रचना की । तब दयालु शिव जी ने विचार किया कि कर्म-बंधन में बंधे हुए प्राणी मु

भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जात

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