‘‘स्वर सरिता सी बह रही थी बिन उददे्श्य
तुम्हारा स्पंदन मेरी अंतशः सुगबुगाहट
निष्प्राण तन में चेतना भर‘‘ {1}
30 मार्च 2022
‘‘स्वर सरिता सी बह रही थी बिन उददे्श्य
तुम्हारा स्पंदन मेरी अंतशः सुगबुगाहट
निष्प्राण तन में चेतना भर‘‘ {1}
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मैं दिल्ली की रहने वाली हूं और एक गृहणी हूं| कविता पढ़ने और लिखने का शौक रखती हूं| कबीर,ओशो और गुलज़ार से बहुत प्रभावित हूं| मन के उदगार को भावों में पिरोने का प्रयास लिए हूं।D