‘‘प्रेम का मर्म समझता है त भी तो सोलह कलाओं से सपूंर्ण है
अभिव्यक्ति का प्रतीक बन सूरज में किरण सा चमकता है
ढ़ाई अक्षर का आधार लिए अखिल बह्रामंड पर राज करताहै जीवन के मूल उद्गम
द्वेत को ‘राधा‘ रूपी अद्धेत में एकाकार कर दृष्टांत एक बनता है।‘‘ {2}
“अंदाज क्या सीखा करीने से
चहल-कदमी सी होने लगी उसके सीने में” {3}