खाली ही तो पन्ना है
सोचती हूँ लिख दूँ
मैं अल्फाज अपने
रंग मुहब्बत के सुर्ख लाल से।
शहर की सड़क कभी खाली नही होती
गाड़ियों की आवाजाही लगी रहती है
बस चंद लम्हों के लिये रुक जाती है
एक सन्नाटा पसरा जाता है।
गाड़ियों की साँस थम जाती है,और चंद लम्हों में
फिर शोर धुँआ चीख उठता है
जाग उठती है सड़क नींद से
रात के सन्नाटे में मुसाफिर के लिये।