अब समय आ गया वैकल्पिक चिकित्सा का
पश्चिमोन्मुखी विचारधारा के अंधानुकरण ने कई जनोपयोगी, उपचार वि़द्यओं को अहत ही नही किया बल्की उनके अस्तित्व को भी खतरे में डाल रखा है ।
आज की मुख्यधारा से जुडी ऐलोपैथिक चिकित्सा जहॉ एक व्यवसाय का रूप धारण करती जा रही है, वही यह महगीं चिकित्सा, मध्यम एंव गरीब व्यक्तियों की पहुंच से दूर होती जा रही है । उपचार के इस व्यवसायीक भ्रमं जाल ने मुख्य चिकित्सा (अग्रेजी) पद्धतियों पर कई सन्देहात्मक प्रश्नों को रेखांकित किया है, परन्तु इस चिकित्सा पद्धति ने अपने नये नये अनुसंधान नई खोज से अनगिनित मरीजों की जान बचाई है, इस बात को कहने में भी कोई सन्देह नही है कि रोग की कई जटिल व विषम परस्थितियों में इसने रोगीयों को एक नया जीवन दान दिया है, परन्तु आज के इस व्यवसायिकरण के दौर में यह चिकित्सा पद्धति अपने चिकित्सा जैसे सेवा भाव, पुनित, जनकल्याण उदेश्यों से भटकती नजर आ रही है । रोग की जटिल व विषम परस्थितियों में यही एक मात्र सहारा है, इस लिये गलती इस उपचार या पैथी की नही बल्की इस पैथी को साधन सम्पन्न जीवकोपार्जन के लिये इसे व्यवसाय के रंगों में रंगना गलत है ।
महॅगे से मंहॅगे परिक्षण अब एक चिकित्सकीय आवश्यकता बनती जा रही है ,इसके पीछे देखा जाये तो चिकित्सक या चिकित्सा संस्थाओं का स्वार्थ अधिक नजर आता है और यह बात मरीज भी समक्षते है परन्तु वो खामोश है । अग्रेजी चिकित्सा उपचार प्रक्रियाओं के व्यवसायीक प्रतिस्पृद्धा की दौड में दवा निर्माता कम्पनीयॉ भी पीछे नही है, उनकी व्यवसायीक प्रतिस्पृद्ध ने सस्ती सुलभ औषधियों के मूल्यों को दुगना, चौगना ही नही, बल्की कई गुना बढा दिया है । आज छोटे से लेकर बडे से बडा डॉ0 जेनरिक दवाये न लिखकर ब्रान्डेड दवाये लिखते है उपचार की इन दोनों प्रक्रियाओं का बोझ सीधे मरीज व उसके परिवार पर अनावश्यक आर्थिक भार पडता है । बात रोग परिक्षण की हो या कई गुना मंहगी दवाओं की हो सभी में डॉ0 का कमीशन तैय होता है ।
अब चलते है रोग उपचार के शाल्य क्रिया के फैलाये भंवरजाल की तरफ, चिकित्सा उपचार का यह भंवरजाल भी किसी जादूगर के भ्रमित इंद्रजाल से कम नही है, कभी कभी जहॉ शाल्यक्रिया (अपरेशन) की आवश्यकता न हो वहॉ कई चिकित्सक शाल्यक्रिया हेतु रोगी को विवश कर देते है । बडे बडे चिकित्सालयों के बडे से बडे खर्चो की पूर्ति का यह एक माध्यम होता है बडे से बडे चिकित्सालय अपने अस्पतालों के मेनेजमेन्ट के खर्च को मरीज के शाल्यक्रिया एंव उपचार जैसे पैसों के गणित से पूरा करने में नही चूंकते ।
ये बडे से बडे नामी चिकित्सक एंव चिकित्सालय अपरेशन या अस्पतालों की सुविधा अस्पताल में भर्ति, विभिन्न उपचारकर्ताओं की सेवायें आदि के नाम पर आर्थिक गणित के गुणा भाग के फार्मूला को पहले से ही तय कर चुके होते है ।
बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को आम जनता तक पहुंचाने में सरकारे विफल ही रही है । इसका सीधा प्रभाव आम जनता भुगत रही है वही शासकीय चिकित्सा सेवाओं के प्रति जन सामान्य का विश्वास कम होते परिणामों ने चिकित्सा के व्यवसायीकरण में अपना मौन योगदान ही नही दिया बल्की इसे अपने व्यवसायीक भंवारजाल को शासन की ऑखों के सामने फलने फूलने का पूरा पूरा मौका दिया है, यदि शासकीय स्कूल व चिकित्सालयों में गुणवत्ता पूर्ण ,भरोसेमंद सुविधायें उपलब्ध होती तो प्राईवेट स्कूल व प्राईवेट चिकित्सालायों के अनावश्यक खर्च के लिये जनता को भटकना नही पडता ।
राजनैतिक दले सत्ता की लोलुप्ता में कुंभकरण की नीद सो रही है, बुनियादी आवश्कताओं का ढांचा चरमाराते हुऐ देख, जनता अंधी, गूंगी ,बहरी बन तमाशा देख रही है, बडे बडे चिकित्सालयों के स्टेनिंग आपरेशन कर न्यूज चैनलों पर पोले खोली गई परन्तु धीरे धीरे बात आई और गयी होती चली गई ।
मुख्य धारा की चिकित्सा पद्धति को छोड कर तथाकथित अन्य चिकित्सा पद्धतियों को हॉसिये में नही रखा जा सकता, आज मुख्यधारा से जुडी चिकित्सा पद्धतियों के खर्चीले उपचार से तंग आकर जनता अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की तरफ भाग रही है ,जिसके आशानुरूप परिणाम भी सामने आ रहे है ।
आज के इस व्यवसायीक प्रतिस्पृद्धा के युग में जहॉ शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य जैसी मूल भूत बुनियादी आवश्यकतायें व्यापार बनती जा रही है । बडा दु:ख होता है जब चिकित्सा जैसे पुनित कार्य को बडे बडे चिकित्सकों व चिकित्सालयों द्वारा धनार्जन का साधन बनाया जाता है । होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति सरल होने के साथ सस्ती सुलभ एंव सभी की पहूंच तक है । परन्तु पश्चिमोन्मुखी विचारधारा के अंधानुकरण की वजह से जन सामान्य का झुकाव ऐलोपैथिक चिकित्सा पर अधिक है । जब तक बडे से बडे परिक्षण व उपचार न हो जाये मरीज को भी तसल्ली नही मिलती ।
होम्योपैथिक चिकित्सा एक लक्षण विधान उपचार विधि है, इसमें किसी रोग का उपचार न कर लक्षणों (प्रबल मानसिक लक्षण,एंव व्यापक लक्षणों) का उपचार किया जाता है । इससे बडे से बडे रोगों का निवारण आसानी से हो जाता है, इसी प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी कई रोगों का उपचार आसनी से बिना किसी अपरेशन या महगे परिक्षणों के हो जाता है । प्राकृतिक चिकित्सा ,योगा ,यूनानी व अन्य प्रचलित या अप्रचलित कई उपचार विधियॉ मुंख्यधारा की चिकित्सा पद्धति के सामने लाचार नजर आ रही है । इसका प्रमुख कारण शासन की नीतियॉ एंव जन सामान्य में प्रचार प्रसार का अभाव है ।
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल
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