साहित्यिक कहानियां एंव कविता
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Bahut achhi lekhan shaili me bakhubi rachi gyi rachanaye badhiya collection
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<p> </p> <p><br></p> <figure><img src="https://3.bp.blogspot.com/-AWIn-51e2qM/WWs_V27CIRI/AAAAA
<p><br> <br> मुंशियान बूढी</p> <p><br></p> <figure><img src="https://4.bp.blogspot.com/-pH8Z8GmuCqg
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<p> मनोयोग एक चमत्कार है ,<br> जीवन मे उन्नति ,बच्चो का मन
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मुंशी जी पंडित सीताराम वैध ,पके कान की उत्तम दबा । हरदत्त पाण्डे मोटे कानून के जानकार ।। मल्थू वैध कनेरा आर्युवेदिक जडीबुटी के जानकार बुन्देली माटी के इन दो सपूतों को शायद ही कोई स्थानीय
कौन है हम कौन है हम , कहॉ से आये, कहॉ जाना है । कुछ पता किया , कुछ भूल गये हम । कौन है हम, कहॉ स
राजयोग निष्ठुर नियति के क्रूर विधान ने राधेरानी के हॅसते खेलते वार्धक्य जीवन में ऐसा विष घोला की बेचारी, इस भरी दुनिया में अपने इकलौते निकम्मे पुत्र के साथ अकेली रह गयी थी
आईडोलोजी (ऑखों के परिक्षण से बीमारीयों की पहचान) बीमारीयों की स्थिति में शारीरिक परिवर्तन सामान्य सी बात है परन्तु लम्बे समय से शरीर परिक्षणकर्ताओं द्वारा सूक्ष्म शारीरिक अंगो के परिक्षणों का परि
गर्मी जिसे तपा दे , गर्मी जिसे तपा दे , ठंड जिसे कपाँ दे । जो हर मौसम मे दुःख क्षेलने का आदि है । इस भूतल पर संर्धषरत कर्मयोगी वह मानव जाती है ।
नही कामराज मुग्धा हुऐ थे , रति तेरे श्रृगारों से । ना ही तेरे यौवन को , आभूषणों ने सवारा ।। रुपसी तेरा सौन्द्धर्य तो , तेरा यौवनाकार है ।। तेरे घने केश मृगनयनी, गहरी नाभी ही तेरा श्रृंगार है ।।
जो चीज सबसे सस्ती है , वही सबसे अनमोल जीवनदायिनी है ।। जो वस्तु मंहगी है , वही जीवन अनुपयोगी है।। सस्ते अनमोल ,उपहार,जो कुदरत ने दिये , पंच तत्वों में अग्नि, जल,पृथ्वी वायु और आकाश है ।
सुनो सुनो ऐ दुनियां वालों सुनो सुनो ऐ दुनियां वालों । ये हिन्दुस्तान हमारा है ।। यहाँ के हर पर्वत, हर नदियों पर, अधिकार हमारा है ।। सुनो सुनो ऐ दुनियां वालों । ये हिन्दुस्तान हम
ये कफन के सौदागरो , किस बात का गु़मान करते हो । एक ना दिन तो तुम्हें भी , कफन ओढ कर समशान तक जाना है
अंधेरे तुम अपनी काली चादर , कितनी भी फैला दो । हम इंसान है , हर सितम से वाकिफ़ है । आज नही तो कल , मंझिल ढूढ ही लेगे । अंधेरे तब तेरा क्या होगा । रोशनी तो हमे रास्ता दिखला ही देगी , अंधेरे तुझे
मत डर रे राही , अब मंझिल आने को है । मत डर रे राही, अब मंझिल आने को है । रात निकाल गई, अब सुबह होने को है । मत डर रे राही , अब मंझिल आने को है । गम के बादल छट गये , अब बहारे आने को है । म
ओओं हम सब मिल कर एक नया भारत बनाये जिसमे मजहपों के नाम नफरत न हो । जातीपात ऊच नीच की दीवार न हो । मंदिर मे हो शंख नांद, मस्जिद मे आजान हो, गुरुद्वारे की गुरुवाणी , चर्चो में घन्टो की आवाज हो ।
देखते देखते जिन्दगी क्या हो गई मुंह पुपला गया । दाँत क्षड गये कमर क्षुक गई ।। चलना भी अब दुःश्वार हो गया देखते देखते जिन्दगी क्या हो गई । कभी कलशों से नहाया , लोटों की तरह । अब जिन्दगी बोक्
हम जिन्दगी के उस मुक़ाम पर खडे है जहाँ कब जिन्दगी की शाम हो जाये । कोई भरोसा नही , कोई भरोसा नही । अब आगे चल नही सकता पीछे मुड नही सकता । जीवनसंगिनी चली जीवन पथ पर अंत समय तक साथ निभाने दुःख
( होम्योपैथी के चमत्कार भाग -2 ) अध्याय -3 होम्योपैथिक चिकित्सा का उदभव किसी ने सत्य ही कहॉ है, आवश्यकता आविष्कार क
रचना संसार की भीड़ से मै गुजरात गया रचनाकारों की कलम से निकलती धूप छाँओं से रंगें शब्दों में वो तसवीरें थी जिसमें सावन भादों सी मिढास थी । कहीं खुशी के मेले ,कही गमों का शोर था । रचनाओं के विच
ओओं हम सब मिल कर ओओं हम सब मिल कर एक नया भारत बनाये जिसमे मजहपों के नाम नफरत न हो । जातीपात ऊच नीच की दीवार न हो । मंदिर मे हो घंटे, मस्जिद मे हो आजान गुरुद्वारे की ग
बेखौप जिन्दगी चलती रही । कभी खुशी,कभी गम की राहो में ।। कभी ठन्ड ने कपाया,कभी गर्मी ने झुलसाया । कितने सावन भादों ,आये चले गये इन राहों मे ।। बेखौप जिन्दगी चलती रही । कभी खुशी,कभी गम की राहों में
सुनों सुनों ऐ इंसानों ,ब्याने कब्रिस्तान के , मेरे सन्नाटे, इस बीराने में,एक ख़ामोश आवाज है । कब्र की लिखीं इबारतें, तुम पढ लोगे इंसानों , पर क्या तुम मेरी ख़ामोश आवाज़ को सुन सकते हो कब्र मे दफ़न हर
जो हे भईया नओ जमानों सिगरट ऊगरियों मे दबी मों में गुटखा चबा रये पेले भईया मोटर साइकिल को फटफट केत हते , अब तो टू व्हीलर, बाईक और कुजाने का का केरये । जो हे भईया नओ जमानों । पेले भईया कार
गुन गुन करती आई चिरईयॉ, कें बें कों शरमा रई । भीडतंत्र कों जमानों है, भईयाँ बहुमत को हे राज । लूट घसोंट (खरीद फरोक्त) कर सरकारें बन रई , जनता ठगी लूटी जा रई , अ, ब, स, को ज्ञान नईयॉ, सरकार,
दद्दा बऊ की सुने ने भाईया साकें (शौक) को मरे जा रये । अँगुरियों (अंगुलियों) मे सिगरट दबाये , और मों (मुँह) में गुटका खाँ रये । निपकत सो पेंट पेर रये , सबरई निकरत जा रये । दद्दा बऊ की सुने ने भाई
अब तों फि़जओं में, वो मस्तीयॉ कहॉ । जहॉ देखों बिरानी ही बिरानी छॉई है ॥ बुर्जुगों से भी अब कायदा नही । ज़ाम से ज़ाम टकराने, की तहजीब सी आई है ॥ किसे कहते हों, तुम इसान यहॉ ? यहॉ तो कपडों की तरह
ऐ जि़न्दगी ले चल मुझें वहाँ जहाँ नफरतों की दिवारें न हो , इंसान का इंसान से, इंसानियत का नाता हो, हर सुबह मस्जिद मे आज़ान हो मंदिर मे घंटो की आवाज़ हो चर्चो में प्रभु इशु की प्रार्थनाएं गुरुद्वार
*मुंशी प्रेमचंद जी की एक "सुंदर कविता", जिसके एक-एक शब्द को, बार-बार "पढ़ने" को "मन करता" है-_*ख्वाहिश नहीं, मुझेमशहूर होने की," _आप मुझे "पहचानते" हो,_ &