एकाएक मुझे भान !! पीछे से किसी अजनबी ने कन्धे पर रक्खा हाथ। चौंकता मैं भयानक एकाएक थरथर रेंग गयी सिर तक, नहीं नहीं। ऊपर से गिरकर कन्धे पर बैठ गया बरगद-पात तक, क्या वह संकेत, क्या वह इशारा? क्य
अकस्मात् चार का ग़जर कहीं खड़का मेरा दिल धड़का, उदास मटमैला मनरूपी वल्मीक चल-विचल हुआ सहसा। अनगिनत काली-काली हायफ़न-डैशों की लीकें बाहर निकल पड़ीं, अन्दर घुस पड़ीं भयभीत, सब ओर बिखराव। मैं अपन
हम जानते है।हम जानते है कि सबकी अपनी जिंदगी है।पर परिवार सबकी बिरीथिंग पावर है।हम जानते है कि समुंदर का पानी पी नही सकते।उसके शैलाब और उफान से दुनियां काँपती है।हम जानते है अकेले जीने में मजा आता है।मरने के बाद का जनशैलाब, खुद की पहचान होती है।हम जानाते है अमीरी जामा बहुत सुंदर होता है।वह सुंदरता भी
तनहाई घिरने लगा मन में अंधेरा, जब शांत होकर मैं आई। मन में होने लगी उथल-पुथल, यादों ने ली अंगड़ाई। कोई नहीं था, संग मेरे, मैं थीं खुद में समाई। मैं थीं,और थीं मेरी तन्हाई, खुशी हो, या हो गम हम दोनों ही तो है, इसके सिवा है किसकी परछाई? मैं और तन्हाई......... आंखों की नमी उभर आई, मुस्कुरा कर लबों ने