6 अगस्त 2022 को देश के 14 वें उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ जी का चयन मात्र एक राजनीतिज्ञ, एक किसान पुत्र की ही जीत नहीं है बल्कि यह एक बार फिर अधिवक्ता समुदाय का भारतीय राजनीति में दखल और प्रभाव दिखा गया है यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा कि इसमें जीत या हार किसी की भी होती किन्तु पद के लिए चुना एक अधिवक्ता ही जाता.
धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान राज्य के झुंझुनू जिले के एक छोटे से गाँव 'किठाना' में जाट के घर हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा किठाना गांव के स्कूल में हुई। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ से पूरी की और फिर राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्कूली शिक्षा के बाद जगदीप धनखड़ ने राजस्थान के प्रतिष्ठित महाराज कॉलेज जयपुर में ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया. यहां से उन्होंने फिजिक्स में BSE की डिग्री ली| साल 1978 में उन्होंने जयपुर विश्वविद्यालय में एलएलबी कोर्स में एडमिशन लिया। कानून की डिग्री लेने के लेने बाद जगदीप धनखड़ ने वकालत शुरू कर दी और साल 1990 में जगदीप धनखड़ को राजस्थान हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट का ओहदा दिया गया. जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट से लेकर देश के कई हाईकोर्टों में वकालत की प्रैक्टिस की. साल 1988 तक देश में प्रतिष्ठित वकीलों में शुमार हो गए थे. सुप्रीम कोर्ट में वकालत के साथ साथ जगदीप धनखड़ जी ने पेरिस में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के भी तीन साल तक सदस्य के रूप में सेवाएं दी.
जगदीप धनखड़ विपक्ष की जिस उम्मीदवार मारग्रेट अल्वा को हराकर उपराष्ट्रपति बने हैं वे मारग्रेट अल्वा भी एक क़ाबिल वकील के रूप में अपना भारतीय राजनीति में ऊंचा मुकाम रखती हैं. अल्वा ने चढ़ती वय में ही एक एडवोकेट के रूप में विशिष्ट पहचान बनाली थी. कांग्रेस पार्टी की महासचिव रहने और तेजस्वी सांसद के रूप में पाँच पारियाँ (1974 से 2004) खेल चुकने के साथ-साथ वे केन्द्र सरकार में चार बार महत्वपूर्ण महकमों की राज्यमंत्री रहीं। एक सांसद के रूप में उन्होंने महिला-कल्याण के कई कानून पास कराने में अपनी प्रभावी भूमिका अदा की। महिला सशक्तिकरण संबंधी नीतियों का ब्लू प्रिन्ट बनाने और उसे केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा स्वीकार कराये जाने की प्रक्रिया में उनका मूल्यवान योगदान रहा। केवल देश में में ही नहीं, समुद्र पार भी उन्होंने मानव-स्वतन्त्रता और महिला-हितों के अनुष्ठानों में अपनी बौद्धिक आहुति दी। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने तो उन्हें वहाँ के स्वाधीनता संग्राम में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ने में अपना समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया.
अधिवक्ता समुदाय भारतीय राजनीति में स्वतंत्रता के पश्चात से ही नहीं बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन से ही महती भूमिका निभाता रहा है. 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम होने पर देश में स्वतंत्रता के लिए देश में आंदोलनों का आरंभ हुआ और हुआ देश हित में सबसे सक्रिय अधिवक्ता समुदाय का स्वतंत्रता आंदोलनों में पदार्पण.
महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, पंडित मोतीलाल नेहरू, सरदार पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सैफुद्दीन किचलू, सी. आर. दास, आसफ अली आदि एक से बढ़कर एक अधिवक्ताओं ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सेवाएं दी. स्वतंत्रता आंदोलनों के आरंभ में ही भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में महात्मा गांधी के प्रवेश को भी चिह्नित किया गया. गांधी, पेशे से वकील भी, दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे, जहां उन्होंने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ और लोगों की नागरिक स्वतंत्रता के लिए एक सफल सत्याग्रह किया था। इस बीच, गांधी ने चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह में अपनी सफलता से पहले ही भारत में अपनी पहचान बना ली थी। गांधी ने जमींदारों के खिलाफ संगठित विरोध और हड़ताल का नेतृत्व किया, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के मार्गदर्शन में, क्षेत्र के गरीब किसानों को खेती पर अधिक मुआवजा और नियंत्रण देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, और अकाल समाप्त होने तक राजस्व वृद्धि और इसके संग्रह को रद्द कर दिया। खेड़ा में, पेशे से वकील, सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ बातचीत में किसानों का प्रतिनिधित्व किया, जिन्होंने राजस्व संग्रह को निलंबित कर दिया और सभी कैदियों को रिहा कर दिया। पटेल ने बाद में गुजरात में खेड़ा, बोरसाड और बारडोली के किसानों को ब्रिटिश राज द्वारा थोपी गई दमनकारी नीतियों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा में संगठित किया; इस भूमिका में, वह गुजरात के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए।एक प्रख्यात वकील और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी चंपारण आंदोलन में गांधी के साथ शामिल थे। एक अन्य वकील और राजनेता भुलाभाई देसाई ने 1928 में बारडोली सत्याग्रह के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई जांच में गुजरात के किसानों का प्रतिनिधित्व किया। भूलाभाई ने किसानों के मामले का मजबूती से प्रतिनिधित्व किया, और संघर्ष की अंतिम सफलता के लिए महत्वपूर्ण थे। पंडित मोतीलाल नेहरू, प्रयागराज के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता एवं ब्रिटिशकालीन राजनेता थे। वे भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे। वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक कार्यकर्ताओं में से थे। 1919 में अमृतसर में अंग्रेजों द्वारा सैकड़ों भारतीयों के नरसंहार ने मोतीलाल को महात्मा गांधी के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित किया. असहयोग आंदोलन , कानून में अपना करियर छोड़ना और जीवन की एक सरल, गैर-अंग्रेजी शैली में बदलना। 1921 में उन्हें और जवाहरलाल दोनों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और छह महीने के लिए जेल में डाल दिया। मोतीलाल ने 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया, जो नमक मार्च से संबंधित था , जिसके लिए उन्हें जेल में डाल दिया गया था। रिहाई के तुरंत बाद उनकी मृत्यु हो गई। आसफ अली देश के सबसे सम्मानित वकीलों में से एक, उन्होंने वकील के रूप में बटुकेश्वर दत्त का बचाव किया. गांधीजी ने गुजरात में अपना प्रसिद्ध नमक सत्याग्रह और दांडी मार्च शुरू करने पर सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंकने के आरोप में क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को गिरफ्तार किया गया था। एक स्वतंत्रता सेनानी और एक प्रमुख वकील आसफ अली ने क्रांतिकारियों का बचाव किया गया. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आसफ अली को कई बार कैद की सजा सुनाई गई थी, जो अगस्त 1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा अपनाए गए 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव के मद्देनजर थी। उन्हें जवाहरलाल नेहरू और अन्य के साथ अहमदनगर किले की जेल में हिरासत में लिया गया था।असहयोग आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू की भागीदारी भी देखी गई जिन्होंने इस दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में खुद को डुबो दिया। लंदन में पढ़े-लिखे वकील, नेहरू ने अपना समय देश का दौरा करने और गांधीवादी विचारों को फैलाने और आम लोगों की समस्याओं से खुद को परिचित कराने में बिताया था। राजगोपालाचारी, लाला लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू, सीआर दास और सरदार पटेल अन्य वकील थे जिन्होंने असहयोग आंदोलन में अपना पूरा योगदान दिया। पटेल ने 300,000 से अधिक सदस्यों की भर्ती के लिए राज्य का दौरा किया और रुपये जुटाए। असहयोग आंदोलन के लिए 1.5 मिलियन फंड और अहमदाबाद और गुजरात में ब्रिटिश सामानों की अलाव आयोजित करने में मदद की। उन्होंने चौरी चौरा कांड के मद्देनजर गांधी के विवादास्पद प्रतिरोध निलंबन का भी समर्थन किया। अधिकांश वकीलों ने अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए मार्शल लॉ के असहाय पीड़ितों के बचाव के लिए, अपने स्वयं के कानूनी अभ्यास की कीमत पर, स्वतंत्र रूप से अपना समय दिया, जिन्हें फांसी की सजा दी गई थी या कारावास की लंबी अवधि की सजा सुनाई गई थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी अधिवक्ता समुदाय देश के नव निर्माण में भागीदार रहा है और देश की प्रतिष्ठा का परचम अपने बुद्धि के बल पर समय समय पर फहराता रहा है. देश पर पूर्व में हुए मुस्लिम आक्रांताओं के हमले, भारतीय संस्कृति को छिन्न भिन्न करने की कोशिश करने वाले मुगलों की सत्ता के दुष्परिणामों से और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अँग्रेजों द्वारा लगभग बर्बाद किए जा चुके भारत के नव निर्माण में अपना जीवन लगाने वाली कॉंग्रेस पार्टी के नेता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी वकील थे.भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी भी वकील थे वहीं वर्तमान में कांग्रेस के बड़े नेताओं में से ऐसे लोग हैं जो राजनेता के साथ-साथ नामी वकील भी हैं.
* देश के टॉप वकीलों की कतार में अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट के सबसे कम उम्र के नामित सीनियर एडवोकेट थे. मूलत: राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले अभिषेक मनु सिंघवी के पिता लक्ष्मीमल सिंघवी भी जाने-माने वकील रहे हैं. वो ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त भी थे.
* 34 साल की उम्र में सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी कुमार को सीनियर काउंसल नियुक्त किया था. कांग्रेस पार्टी की सरकार में वो कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं.
* देश के नामी वकीलों में शुमार और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद यूपीए सरकार में कई मंत्रालय संभाल चुके हैं. इनके पिता खुर्शीद आलम खान पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के दामाद थे. अलीगढ़ के रहने वाले खुर्शीद ने इंदिरा गांधी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय में विशेष अधिकारी के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी. वो प्रख्यात लेखक और कानून शिक्षक भी रहे हैं.
* पूर्व सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री मनीष तिवारी पेशे से वकील हैं. उनकी पहचान गरीबों का मुफ्त केस लड़ने को लेकर है
* कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केटीएस तुलसी भी इसी कतार में हैं. 7 नवंबर 1947 को होशियारपुर पंजाब भारत में जन्मे तुलसी ने पंजाब विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में कला स्नातक की उपाधि ली फिर 1971 में एलएलबी करके वकालत शुरू कर दी. तुलसी की पहचान कई नामी केस लड़ने से हुई.
यही नहीं, वर्तमान सत्ताधारी दल भाजपा से भी अधिवक्ता समुदाय का एक बड़ा धड़ा आज भी जुड़ा हुआ है और देश सेवा में संलग्न है. वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली एक प्रतिष्ठित एडवोकेट थे. स्व सुषमा स्वराज एक प्रख्यात एडवोकेट थी, पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पहले जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल का पुरजोर विरोध करने के बाद वे सक्रिय राजनीति से जुड़ गयीं। वर्ष २०१४ में उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. कैबिनेट में उन्हें शामिल करके उनके कद और काबिलियत को स्वीकारा गया. दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और देश में किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने की उपलब्धि भी उन्हीं के नाम दर्ज है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सहित मोदी कैबिनेट में वकील भरे हुए हैं। इसमें जेपी नड्डा, चौधरी बीरेंद्र सिंह, रामकृपाल यादव और राजेन मोहन गोहन, अर्जुन मेघवाल, पीपी चौधरी भी शामिल हैं। वर्तमान लोकसभा में कुल सांसद हैं 543। इनमें अकेले 7% के पास वकालत की डिग्री है।
अधिवक्ताओं की देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के नव निर्माण में योगदान अधिवक्ता समुदाय के लिए गौरव की बात है और आज देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों में से एक पर एक अधिवक्ता जगदीप धनखड़ जी का चुना जाना अधिवक्ता समुदाय की देश सेवा में निरंतर सक्रियता को दर्शाने के लिए पर्याप्त है और इस शानदार गौरवशाली उपलब्धि के लिए जगदीप धनखड़ जी और देश के अधिवक्ता समुदाय को हार्दिक शुभकामनाएं 👍🌹🙏
द्वारा
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)