कवि शायर कह कह कर मर गए-
''इस सादगी पे कौन न मर जाये ए-खुदा,'
'''न कजरे की धार,न मोतियों के हार,न कोई किया सिंगार फिर भी कितनी सुन्दर हो,तुम कितनी सुन्दर हो.'
'पर क्या करें आज की महिलाओं के दिमाग का जो बाहरी सुन्दरता को ही सबसे ज्यादा महत्व देता रहा है और अपने शरीर का नुकसान तो करता ही है साथ ही घर का बजट भी बिगाड़ता है.लन्दन में किये गए एक सर्वे के मुताबिक ''एक महिला अपने पूरे जीवन में औसतन एक लाख पौंड यानी तकरीबन ७२ लाख रूपए का मेकअप बिल का भुगतान कर देती है .इसके मुताबिक १६ से ६५ वर्ष तक की उम्र की महिला ४० पौंड यानी लगभग तीन हज़ार रूपए प्रति सप्ताह अपने मेकअप पर खर्च करती हैं .दो हज़ार से अधिक महिलाओं के सर्वे में आधी महिलाओं का कहना था कि'' बिना मेकअप के उनके बॉय फ्रैंड उन्हें पसंद ही नहीं करते हैं .''''दो तिहाई का कहना है कि उनके मेकअप किट की कीमत ४० हज़ार रूपए है .''''ब्रिटेन की महिलाओं के सर्वे में ५६ प्रतिशत महिलाओं का कहना था कि १५०० से २००० रूपए का मस्कारा खरीदने में ज्यादा नहीं सोचती हैं .''
ये तो चंद आंकड़े हैं जो इस तरह के सर्वे प्रस्तुत करते हैं लेकिन एक भेडचाल तो हम आये दिन अपने आस पास ही देखते रहते हैं वो ये कि महिलाएं इन्सान बन कर नहीं बल्कि प्रोडक्ट बन कर ज्यादा रहती हैं .और बात बात में महंगाई का रोना रोने वाली ये महिलाएं कितना ही महंगा उत्पाद हो खरीदने से झिझकती नही हैं .और जहाँ तक आज की युवतियों की कहें कि उन्हें बॉय फ्रैंड कि वजह से मेकअप करना पड़ता है तो ये भी उनकी भूल ही कही जाएगी .वे नहीं जानती सादगी की कीमत-
''इस सादगी पे कौन न मर जाये ए खुदा .''
और फिर ये तो इन मेकअप की मारी महिलाओं को सोचना ही होगा कि आज जितनी बीमारियाँ महिलाओं में फ़ैल रही हैं उसका एक बड़ा कारण इनके मेकअप के सामान हैं .और एक शेर यदि वे ध्यान दें तो शायद इस ओर कुछ प्रमुखता कम हो सकती है.राम प्रकाश राकेश कहते हैं-
गागर छलका करती सागर नहीं छलकते देखे,
नकली कांच झलकता अक्स हीरे नहीं झलकते देखे,
कांटे सदा चुभन ही देते,अक्स फूल महकते देखे.
तो फिर क्या सोचना फूल बनने की चाह में वे कांटे क्यों बनी जा रही हैं .कुछ सोचें और इन्सान बने प्रोडक्ट नहीं.
शालिनी कौशिक
एडवोकेट