गुरुवार को कानून और न्याय मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया कि भारत में किसी भी उच्च न्यायालय की कोई नई पीठ स्थापित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
डॉ समसित पत्र (सांसद) ने निम्नलिखित प्रश्न पूछे:
क्या कानून और न्याय मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि:
(क) पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत में न्यायालयों के लिए स्थापित नई न्यायपीठों का विवरण;
(बी) वर्तमान में सरकार के पास लंबित नई पीठों की स्थापना के प्रस्ताव: और
(ग) भारत में एक न्यायालय के लिए एक नई पीठ स्थापित करने की प्रक्रिया?
श्री किरेन रिजिजू का उत्तर:
(ए) से (सी): पिछले पांच वर्षों के दौरान, जलपाईगुड़ी में कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक सर्किट बेंच की स्थापना 07.02.2019 से की गई थी। उच्च न्यायालय की खंडपीठों की स्थापना जसवंत सिंह आयोग द्वारा की गई सिफारिशों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए निर्णय के अनुसार की जाती है। जिसमें एक पूर्ण प्रस्ताव पर विचार करने के बाद आवश्यक व्यय और आधारभूत सुविधाएं प्रदान करना है और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिन–प्रतिदिन प्रशासन की देखभाल करने की आवश्यकता है। इसके बाद प्रस्ताव पर संबंधित राज्य के राज्यपाल की सहमति भी होनी चाहिए। वर्तमान में किसी भी उच्च न्यायालय की पीठों की स्थापना के लिए सरकार के पास कोई पूर्ण प्रस्ताव लंबित नहीं है।
केंद्रीय सरकार का तो यही ज़वाब आना था और यह उस मजबूत स्थिति रखने वाली भारतीय जनता पार्टी के कानून मंत्री किरण रिजिजू का बयान है जो पूर्ण बहुमत से केंद्र में भी है और उत्तर प्रदेश में भी, और ज़वाब भी यह " कि वर्तमान में किसी भी उच्च न्यायालय की पीठों की स्थापना के लिए सरकार के पास कोई पूर्ण प्रस्ताव लम्बित नहीं है." अब केंद्र सरकार से तो सवालों का रास्ता ही बंद हो गया किन्तु हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं को कुछ सवाल करने हैं - पश्चिमी उत्तर प्रदेश केंद्रीय संघर्ष समिति से
1- क्या कर रही थी संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में - जब मेरठ में योगी आदित्यनाथ जी के आगमन पर एक भी आवाज़ हमें नहीं सुनाई दी - खंडपीठ नहीं तो वोट नहीं?
2- क्या फायदा है इन रोज़ रोज़ की हड़ताल का - जब 1979 से चल रहे इस आंदोलन को संघर्ष समिति जनता और अधिवक्ताओं के हित में जोश - खरोश से उठा ही नहीं पा रही?
3- क्यूँ संघर्ष समिति अपनी रणनीति को कारगर स्वरुप नहीं दे पा रही है?
कारण केवल एक है सत्ता के प्रभाव में अधिवक्ताओं का, जनता का हित दबाया जा रहा है. आज सरकार अधिवक्ताओं के प्रति उपेक्षित रवैय्या अख्तियार किए हुए है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए अग्रसर है और चाहे अनचाहे वेस्ट यू पी केंद्रीय संघर्ष समिति इस दबाव को मान रही है और पुरजोर तरीके से वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट खंडपीठ के आन्दोलन को आगे बढ़ाने में कमजोर पड़ती जा रही है.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
कैराना (शामली)