पति द्वारा क्रूरता से तो सभी वाकिफ हैं और उसके परिणाम में पति को सजा ही सजा मिलती है किन्तु आनंद में तो पत्नी है जो क्रूरता भी करती है तो भी सजा की भागी नहीं होती उसकी सजा मात्र इतनी कि उसके पति को उससे तलाक मिल सकता है किन्तु नारी-पुरुष समानता के इस युग में पारिवारिक संबंधों के मामले में पुरुष समानता की स्थिति में नहीं है .
2016 [1 ] D .N .R .[D .O .C .-11 ]17 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत क्रूरता के आधार पर पति भी अपनी पत्नी से तलाक ले सकता है . इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उपरोक्त वाद में पत्नी द्वारा पति के विरूद्ध कई दाण्डिक एवं सिविल प्रकरणों का दाखिल किया जाना क्रूरता माना और इस आधार पर पति को पत्नी से तलाक लेने का अधिकारी मानते हुए कहा कि ऐसी क्रूरता के आधार पर तलाक की डिक्री पारित की जा सकती है ,साथ ही यह भी कहा कि ऐसे में यदि तलाक की डिक्री पारित की जाती है तो पति को पत्नी को स्थायी निर्वाह व्यय देना होगा .इस तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलाक की डिक्री के विरूद्ध अपील को ख़ारिज किया लेकिन पति को निर्देशित किया कि वह स्थायी निर्वाह व्यय भत्ता के रूप में 35 लाख की रकम जमा करे. सवाल ये है कि क्या हम इसे न्याय कहेंगे ? पति को जब क्रूरता करने पर कारावास की सजा का प्रावधान है तो पत्नी को क्रूरता करने पर भरण-पोषण की सुविधा क्यों ? क्या वह पत्नी जो पति के साथ क्रूरता करती है वह पत्नी के रूप में न्यायालय से राहत पाने की हक़दार है ? क्या यह स्त्री-पुरुष समानता का कानून है ?
वास्तव में आज कानून की यही दरियादिली कुछ पुरुषों के लिए गले की फ़ांस बन गयी है और उन्हें कानून की इस दरियादिली के आगे झुकते हुए अपनी व् अपने परिजनों की जान बचाने के लिए ऐसी क्रूर स्त्री के आगे सब लुटाना पड़ता है .कानून को ध्यान देना ही होगा .समय बदल रहा है
.शालिनी कौशिक
एडवोकेट